कवच जैसी मजबूत कार वो भी इतनी कम प्राइस में – जल्दी देखें:-इस साल का नवंबर माह तीन बड़ी एसयूवी के नाम करीबी महिंद्रा की एक्सईवी 9एस कतार में हैं। पेट्रोल, डीजल और इलेक्ट्रिक के विकल्प के साथ आने वाली इन नामी कारों में और क्या है खास, आइए जानें
मुकाबले में उतरेंगी एक साथ तीन नई एसयूवी
इस महीने भारतीय ऑटो बाजार में हलचल बढ़ने वाली है। महीने की शुरुआत में हुंडई अपनी बहुप्रतीक्षित कार वेन्यू पेश कर चुकी है, वहीं टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा अपनी नई एसयूवी को इसी महीने पेश करेंगे।
हुंडई वेन्यू
नवंबर की शुरुआत में नई-जेनरेशन हुंडई वेन्यू लॉन्च हो गई है। इसमें बोल्ड एक्सटीरियर, कनेक्टेड एलईडी लाइट बार, नया फ्रंट फेसिया और पुनः डिजाइन किए गए अलॉय व्हील हैं। इंटीरियर में ट्विन 12.3-इंच स्क्रीन, 360 कैमरा, वेंटिलेटेड सीट और लेवल-2 अडास फीचर्स मिलेंगे। इंजन विकल्प 1.2-लीटर पेट्रोल, 1.0-लीटर टर्बो-पेट्रोल और 1.5-लीटर डीजल हैं, जिसमें डीजल अब टॉर्क-कन्वर्टर ऑटोमैटिक के साथ आता है।
कीमत : बेस एचएक्स2 वेरिएंट की कीमत 7.90 लाख (एक्स-शोरूम) रुपये से शुरू होती है। टर्बो इंजन वाला स्पोर्टी एन लाइन वर्जन भी आने की संभावना है।
टाटा सिएरा
टाटा मोटर्स अपनी सिएरा मॉडल को नए रूप में पेश करने जा रही है। इसमें आधुनिक डिजाइन के साथ हल्की रेट्रो झलक मिलेगी। 1.5 लीटर टर्बो-पेट्रोल और 1.5 लीटर डीजल इंजन विकल्प मैनुअल और ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के साथ होंगे। ट्रिपल-स्क्रीन डैशबोर्ड, वेंटिलेटेड सीटें और अडास जैसे फीचर मिलेंगे। कीमत करीब 11 लाख रुपये से शुरू हो सकती है। लॉन्च 25 नवंबर को संभावित है।
महिंद्रा एक्सईवी 9 एस
नवंबर के अंत में, महिंद्रा अपनी पूरी तरह इलेक्ट्रिक तीन-रो एसयूवी एक्सईवी 9एस पेश करेगी, जो एक्सयूवी 700 का इलेक्ट्रिक संस्करण है। इस एसयूवी में छरहरा एयरोडायनामिक डिजाइन, एलईडी लाइटिंग और तीन स्क्रीन वाला डिजिटल इंटीरियर मिलेगा। दो बैटरी विकल्प हैं – 59 केडब्ल्यूएच और 79 केडब्ल्यूएच, जिसमें बड़ी बैटरी से अधिकतम 500 किमी की रेंज मिलेगी। कीमत अभी सामने नहीं आई है। लॉन्च की संभावित तिथि 27 नवंबर है।
मुकाबला किनसे
नई वेन्यू को ब्रेजा, नेक्सॉन, सोनेट, वहीं सिएरा को क्रेटा, सेल्टोस और एक्सईवी १एस को टाटा हैरियर, बीवाईडी एटोउ से चुनौती मिल सकती है।
कार कितनी सुरक्षित, टिकाऊ और दमदार होगी, इसका अधिकतर दारोमदार उसके फ्रेम और फ्रेम में इस्तेमाल की गई सामग्री पर होता है। यही उसकी असली ताकत है। इसीलिए कारों में इस्तेमाल होने वाले ढांचे की धातु पर आधुनिक प्रयोग होते रहे हैं। लोगों को ज्यादा से ज्यादा मजबूत, टिकाऊ और सुरक्षित कार चाहिए। आज क्या कर रही हैं कार बनाने वाली कंपनियां? कारों की असली ताकत के बारे में बता रही हैं तृप्ति मिश्रा
कवच जैसी मजबूत होनी चाहिए कार
इन दिनों ऑटोमोटिव जगत का ध्यान कार के डांचे में इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल पर है। हाल ही में आधुनिक फ्लेक्स फाइबर की संभावनाओं पर खूब चर्चा हुई थी। दरअसल, कार का दांचा उसकी ताकत, सुरक्षा और टिकाऊपन को असली बुनियाद होता है।
यही वजह है कि
अब शोधकर्ता सिर्फ डिजाइन, इंजन या फीचर्स पर नहीं, बल्कि उस माध्यम के चुनाव पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जिससे किसी वाहन, खासकर कार का दांचा बनाया जाता है। यह किसी भी कार मॉडल को साधारण से खास और किसी भी सफर में वाहन को भरोसेमंद साथी में बदल देता है। आइए जानते हैं कि किमी कार के लिए सही मैटीरियल का चयन क्यों मायने रखता है
तय करता है कार की पहचान
कार बॉडी में उपयोग की गई धातु इसके माइलेज, मजबूती को तो तय करती ही है, यह किस सोच से बनाई जा रही है, यह भी तय होता है। मसलन लग्जरी या स्पोर्ट्स कार के बॉडी मैटीरियल अलग होंगे। यही तय करता है उसकी डिजाइन, सुरक्षा और रखरखाव का स्तर क्या होगा।
डिजाइन और तकनीक में लचीलापन
एल्यूमिनियम और कंपोजिट धातु का इन दिनों इस्तेमाल बड़ा है। इससे कारों का आकार और स्टाइलिंग ज्यादा आधुनिक, हल्का और एयरोडायनामिक हो गया है। इसी से नई कारें पहले से कहीं ज्यादा आकर्षक और प्रीमियम दिखती हैं।
सुरक्षा की असली परत
कार की सेफ्टी सिर्फ एयरबैग पर नाहीं, बल्कि कार के चाँडी मैटीरियल की ताकत और लचीलेपन पर निर्भर करती है। “क्रंगल जीन” तकनीक के लिए सही घनत्व वाला मैटीरियल जरूरी है, ताकि यह टक्कर से होने वाले झटके को रोक सके और यात्रियों का केविन सुरक्षित रखें।
कीमत और मरम्मत पर असर
धातु या मैटोरियल जितना आधुनिक होगा, उसकी मरम्मत उतनी ही महंगी होगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि जहां स्टील बॉडी में आसानी से सुधार किया जा सकता है, वहीं कंपोजिट, एल्युमिनियम या कार्बन-फाइवर बाँडी के लिए विशेष उपकरण और प्रशिक्षित तकनीशियनों की जरूरत होती है।
इसी कारण कंपनियां अब मैटीरियल मिक्स” रणनीति अपनाती हैं।
यानी एक ही कार में अलग-अलग हिस्सों के लिए अलग मैटीरियल का इस्तेमाल । भारत की अधिकांश ऑटो कंपनियां ऐसा कर रही हैं। उदाहरण के लिए कार बॉडी को मजबूती के लिए स्टील या कंपोजिट धातु का रखते हुए इंजन जैसे हिस्सों को एल्युमिनियम कर बनाया जा रहा है।
जैसी खासियत, वैसा फ्रेम
फिलहाल भारत में बजट कारों में स्टील बॉडी आम है, जैसे मारति, हुंडई, टाटा। एमजी, बोवाईडी, बीएमडब्ल्यूईची सरीखी प्रीमियम और इलेक्ट्रिक कारों में एल्युमिनियम का प्रत्यक्ष या परोक्ष उपयोग बढ़ रहा है, जबकि कार्बन फाइबर अभी सिर्फ लग्जरी स्पोर्ट्स कारों तक सीमित है। इस समय ऑटो इंडस्ट्री में करीब 60 फीसदी हिस्सा हाई-स्ट्रेंथ स्टील का है, एल्युमिनियम (8-10 फीसदी) और पलास्टिक कंपोनिट्स (लगभग 8 फीसदी) भी तेजी से बढ़ रहे हैं|
किस वाहन में कौन-सी निर्माण धातु इस्तेमाल होगी,
यह कंपनी के लक्ष्य पर निर्भर करता है। जैसे माइलेज चाहिए, तो एहल्युमिनियम या कंपोजिट जैसे हल्के मैटीरियल बेहतर होते हैं। सेपटी और स्पीड के लिए हाई-स्ट्रेंथ स्टील, कार्बन फाइबर है, तो पर्यावरण संतुलन और टिकाऊ उत्पादन के लिए अब फ्लेक्स फाइबर और नेचुरल कंपोजिट्स पर कंपनियों की नजर है।
भारतीय कंपनियां भी मैटीरियल के बदलाव की दौड़ में शामिल हैं।
मारूति और टाटा हाके, लेकिन मजबूत स्टील पर काम कर रही है, जबकि महिंद्रा अपने इलेक्ट्रिक मॉडलों में कंपोजिट और एल्युमिनियम का संयोजन अपना रही है। आने वाले समय में देशी निर्माता भी नेचुरल फाइबर मैटीरियल्स को अपनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
भविष्य के ग्रीन और स्मार्ट मटेरियल
ऑटो इंडस्ट्री अय ऐसे ‘स्मार्ट मैटोरियल्स’ पर काम कर सही है, जो खुद से बदलने की क्षमता रखते हैं जैसे बॉडी सतहें, जो खरोंच लगने पर खुद ठीक हो जाती हैं या ऐसे कंपोजिट जी तापमान और झटकों के हिसाब से अपनी मजबूती बदल लेते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पहले कार का मतलब होता था स्टील और ताकत, जितनी भारी उतनी भरोसेमंद। आज इंजीनियरिंग का असली कमाल ‘मैटीरियल में छिपा है। फ्लेक्स फाइबर, ग्राफीन और बायो-बेस्ड कंपोजिट जैसे नए मैटीरियल रिसर्च के दौर में हैं। असल चुनौती है हल्केयन, मजबूती, सुरक्षा और किफायत के बीच संतुलन संतुलन बनाना।
यही कारण है कि
कंपनियां मिक्स्ड-मैटीरियल बॉडी अपना रही है। यह कहर की लागत और उस दोनों को संतुलित रखता है। आने वाले सालों में कारों की पहचान इस बात से नहीं होगी कि वो किस कंपनी की है, बल्कि इस बात से होगी कि उनमें क्या मैटीरियल इस्तेमाल हुआ है, यही असली गेम चेंजर होगा। – टूटू धवन, ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट एंड एनालिस्ट
धातुओं का दमखम
स्टील
परंपरागत लेकिन भरोसेमंदः मजबूत, सस्ता और मरम्मत में आसान। अब एडवांस्ड हाई-स्ट्रैष स्टील (AHSS) इसका आधुनिक रूप है, जो पतला होते हुए भी दोगुनी ताकत देता है।
एल्युमिनियम
हल्कापन और माइलेजः वजन घटाता है, माइलेज बढ़ाता है। टाटा, हुंडई, टेस्ला जैसी कंपनियां इसका किसी न किसी रूप में उपयोग करती रही है। मरम्मत महंगी और तकनीकी रूप से जटिल होती है
कार्बन फाइबर
सुपरकारों की ताकतः स्टील से पाच गुना मजबूत और 50 प्रतिशत हल्का। बीएमडब्ल्यू आई, लेम्बोर्गिनी, जैसी कारों में उपयोग। लागत अभी बढ़ी चुनौती है।
फ्लेक्स फाइबर
पर्यावरण की और कदम पलेवर, जूट और हम्प जैसे प्राकृतिक रेशों से बना ‘ग्रीन कपोजिट’। यह हल्का, टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल है। बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियां इसका परीक्षण कर रही है। शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, इससे निर्मित कारें 40 फीसदी तक म कार्बन उत्सर्जन करती है।
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