दही वाली मंगम्मा | श्रीनिवास | Bihar board class 10th hindi pdf note
Class -10th

दही वाली मंगम्मा | श्रीनिवास | Bihar board class 10th hindi pdf note

लेखक-परिचय-लेखक श्रीनिवास का जन्म कर्नाटक प्रांत के कोलार नामक स्थान में 1891 ई० में हुआ था। इनका पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार था। ये कन्नड़ साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकारों में अग्रगण्य माने जाते थे। इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं कविता, नाटक, आलोचना, जीवन-चरित्र सभी में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

प्रस्तुत पाठ
प्रस्तुत पाठ ‘दही वाली मंगम्मा’ कन्नड़ कहानियाँ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से साभार लिया गया है। इस कहानी का हिन्दी अनुवाद बी० आर० नारायण ने किया है। इनकी साहित्यिक-सेवा के लिए साहित्य अकादमी ने इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत किया तो इनके कहानी-संकलन ‘सण्णा कथेगुलु’ को 1968 ई० में पुरस्कृत किया गया । इनका देहावसान हो चुका है।

पाठ-परिचय-प्रस्तुत कहानी दही वाला मंगम्मा भावना प्रधान कहानी है। इसमें दो पीढ़ियों की भावनाओं को लेखक ने बड़े ही स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है। कहानी एक दही बेचने वाली की है जो परिवार में सब पर अपनी धाक् कायम रखना चाहती है, जबकि बहू अपने अधिकार का त्याग करना अपना अपमान समझती है। कहानी का आरंभ दही वाली मंगम्मा के दही बेचने से होता है ।

सारांश-मंगम्मा अवलूर के समीप वेंकटपुर के रहनेवाली थी और रोज दही बेचने बेंगलूर आती थी। वह आते-जाते मेरे पास बैठती और अपनी बातें कहती थी।

एक दिन वह मेरे बच्चे को देखकर अपना पुत्र और पति की कहानी कहकर पति को अपनी ओर आकृष्ट करने की रहस्यमयी बातें कहने लगी । आदमी को वश में रखने का उन्होंने तीन चार अपना अनुभवपूर्ण गुर भी बताया ।

पन्द्रह दिनों बाद मंगम्मा आई और रोती हुई अपना गृह कलह तथा बेटा-बहू से अलग होने की दुःखद कहानी सुनाई। इस प्रकार बेटे-बहू से विरक्त होकर अपने जोड़े हुए पैसे को अपने साज शृंगार पर खर्च करने लगी। इस से वह कुछ लोगों के आलोचना की पात्रा भी बन गई। बहू भी उसकी जैकेट पर ताना कसने लगी और बात बढ़ने पर दिये गये गहने भी लौटाने को तैयार हो गई।

प्रत्यक्ष में तो झगड़े का कारण पोते की पिटाई थी किन्तु मूल रूप में सास-बहू की अधिकार सम्बन्धी ईर्ष्या थी। औरत को अकेली जानकर कुछ अवांछित तत्व के लोग उसे धन और प्रतिष्ठा पर भी आँखें उठाते हैं। रंगप्पा भी ऐसा ही किया, जिसे बहू की पैनी निगाहों ने ताड़ लिया ।

उसने पोते को उसके पास भेजने का एक नाटक किया। अब मंगम्मा पोते के लिए मिठाई भी बाजार से खरीदकर ले जाने लगी। एक दिन कौवे ने उसके माथे से मिठाई की दोना ले उड़ा। अंधविश्वास के कारण मंगम्मा भयभीत हो उठी जिसे माँ जी ने बड़ी कुशलता से निवारण किया ।

बहू के द्वारा नाटकीय ढंग से पोते को दादी के पास भेजने का बहू का मंत्र बड़ा कारगर हुआ। दूरी बढ़ने से भी प्रेम बढ़ता है। मानसिक तनाव घटता है। हुआ भी ऐसा ही। मंगम्मा को भी बहू में सौहार्द, बेटे और पोते में स्नेह नजर आने लगी। बड़े-बूढ़ों ने भी समझाया ।

बहू ने मंगम्मा का काम अपने जिम्मे ले लिया और एक दिन सासु और बहू गोद में बच्चा के लिए झगड़ा किया। समय बीतने पर उसने बहू के स्नेह का बखान किया ।

एक दिन दही बेचने के क्रम में नंजम्मा (बहू) आई और मुझे सारी बातें बताई । उसने परिवार का जमा पैसा लुट जाने के भय के कारण बहु बड़ी कुशलता से पुनः परिवार में शान्ति स्थापित कर लिया और पूर्ववत् रहने लगी। पर सोचने पर यह अधिकार की खींचातानी गाँव या शहर सर्वत्र एक समान है और इसके लिए प्रत्येक बुद्धिमती बहू को एक पार्ट अदा करना चाहिए ।

अंत में लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी है। उसमें माँ-बेटे तथा पति-पत्नी है। माँ बेटे पर से अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहती है तो बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। यह सारे संसार का ही किस्सा है।

किसी की हार-जीत क्या होगी, क्योंकि पानी में खड़े बच्चे का पाँव खींचने वाले मगरमच्छ की-सी दशा बहू की है तो ऊपर से बाँह पकड़कर बचाने की दशा माँ की है। बीच में बच्चे को कष्ट है। यह सिर्फ गाँव में रहने वाली दही वाली मंगम्मा के घर की नहीं है, अपितु शहर में दही लेने वाली मंगम्मा के घर की भी है। इस नाटक का कोई अंत नहीं है।

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