75% उपस्थिति पूरा करने में- 20 बच्चों ने गवांइ अपनी जान:- मधुरपट्टी गांव वालों के लिए गुरुवार की सुबह मनहूस खबर लायी। अभी तो कुछ देर पहले घर से हंसते खिलखिलाते बच्चे निकले थे। 10वीं में पढ़ने वाली कई बच्चियां एक साथ फॉर्म भरने निकली थीं। घर से निकले मुश्किल से 15- 20 मिनट हुए थे कि नाव पलटने की सूचना आई। बदहवास दौड़ते हुए गांव वाले नदी की ओर भागे। मां की सूनी आंचल अपने कलेजे के टुकड़े को पुकारती रह गई ।
- नदी में बह गए अफसर बिटिया बनने के सपने
- पानी में उपला रही थीं बच्चों की किताबें
- मां ! मेरी पसंद की सब्जी बनाना, तुरंत लौटूंगी
- दोनों पोतियों को ढूंढने नदी की तरफ दौड़ती रही दादी
- उपस्थिति पूरी करने की थी मजबूरी – बोलीं छात्राएं
- छात्र-छात्राओं ने कहा, जान हथेली पर रख जाते हैं पढ़ने
नदी में बह गए अफसर बिटिया बनने के सपने-75% उपस्थिति
15 साल की बेबी मैट्रिक का फॉर्म भरने घर से निकली थी । पिता जगदीश राय सिलीगुड़ी में बोरा ढोते हैं। घर में मां मनती देवी से बेबी ने पैसे लिए थे। और कहा था कि मां देखना एक दिन मैं भी अफसर बिटिया बनूंगी। दहाड़ें मार कर रोती मां और चाची कह रही थी तू कहां चली गई मेरी अफसर बिटिया । मां हर बार दौड़ कर नदी की ओर भागती कि मेरी बेटी पुकार रही है। बार-बार बेहोश होती माँ को किसी तरह घरवाले संभाल रहे थे। गांव में हर दूसरे घर में मातम था, ऐसे में कई घरों में आंसू पोंछने वाला भी कोई नहीं था।
पानी में उपला रही थीं बच्चों की किताबें-75% उपस्थिति
मधुपट्टी में गुरुवार को कई घर ऐसे भी थे, जहां एक ही घर से दो-दो बहनें लापता हैं। सुष्मिता और राधा दोनों चचेरी बहने हैं। सुष्मिता की मां चरणकला देवी ने रोते हुए बताया कि हमलोग मजदूरी करते हैं। दोनों बहनों ने कहा कि आज फॉर्म भरना है। पैसे लेकर गई थीं। थोड़ी देर बाद ही खबर आई कि नाव डूब गई है। राधा की मां गिरिजा देवी बोली कि बच्चियां कहती थीं कि मां मुझे मजदूरी नहीं करना । मेरे कलेजे के टुकड़े का किताब-कॉपी पानी के ऊपर छता रहा था। कोई मेरी बच्ची को भी बचा लेता ।
मां ! मेरी पसंद की सब्जी बनाना, तुरंत लौटूंगी-75% उपस्थिति
हम्मर बेटी कामिनी के गरम-गरम खाना पसंद है। देख न अभी चूल्हा जरले है। आबे द ओकरा तब बताएब, इतना देर में खाने ठंडा जाएत…। होश में आते ही कामिनी की मां रंजू देवी यह कहते हुए दहाड़े मार कर रोने लगीं। महिलाओं के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। कामिनी भी बेलौर हाईस्कूल में पढ़ती है। उसकी चाची ने कहा ि आज क्या हो गया था। सभी लड़कियां आज ही एक साथ घर से निकलीं। सबके पास एक हजार रुपया था। कहा कि फॉर्म भरना है।
दोनों पोतियों को ढूंढने नदी की तरफ दौड़ती रही दादी
अलका और आमिनी दोनों बहनें स्कूल जाने के लिए निकली थीं। दादी इंदू देवी 10 बजे से लेकर शाम पांच बजे तक नदी के किनारे-किनारे रोती हुई दौड़ती रही। लोग उन्हें पकड़ कर ले आते और वह फिर भागती। गांव वालों से कह रही थी देखो न बच्ची कहीं छुपी होगी। मुझे तंग करने के लिए हमेशा यही करती हैं।
उपस्थिति पूरी करने की थी मजबूरी – बोलीं छात्राएं
हमलोग भी उसी नाव पर बैठने वाले थे। कुछ लोगों को फॉर्म भरना था तो कुछ लोगों को कक्षा करनी थी । नाव पूरी भर गई थी। मेरी चचेरी बहन को मैट्रिक का फॉर्म भरना था, वह बैठ गई। मैं और कुछ अन्य लड़कियां किनारे पर ही रह गए कि अगली बारी में हमलोग जाएंगे। हमारी आंखों के सामने हादसा हुआ। हमलोग गरीब हैं और उसमें भी लड़कियां। क्या साधन है हमारे पास कि हम कुछ और कर पाएं। गुरुवार को नाव हादसे में लापता बहन की तलाश में जुटी नीतू यह बताते हुए रो पड़ी
छात्र-छात्राओं ने कहा, जान हथेली पर रख जाते हैं पढ़ने
इंटर में पढ़ने वाली नीतू भी उसी नाव पर बैठने वाली थी, मगर नाव भर जाने के कारण नहीं बैठी। हादसे के बाद वहां खड़ी अन्य छात्राओं का आक्रोश फूट पड़ा। रिंकू, अनीता समेत अन्य इंटर की छात्राओं ने कहा कि पहले तो हमलोग कभी-कभी जाती थीं, मगर अब कहा जा रहा कि 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य है, नहीं तो नाम काट दिया जाएगा। इस डर से हमलोग सप्ताह में तीन- चार दिन चली जाती हैं क्या पता था कि जो जा रही है, वह अब कभी नहीं लौटेंगी। छात्र अनिल ने कहा कि स्कूल में जाने का आदेश दिया जाता है, मगर हम जाएंगे कैसे, यह किसी ने कभी नहीं सोचा। अपने रिस्क पर जान हथेली पर डाल हमलोग पढ़ने जाते हैं।
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