जनतंत्र का जन्म | रामधारी सिंह दिनकर जनतंत्र का जन्म—-लेखक-परिचय दिनकर की काव्यशैली के एक नेत्र में रणचण्डी का प्रकोप है और दूसरे में रसवंती का प्यार छलक रहा है। रुद्र की श्रृंगी और रास की मुरली बजानेवाली कभी ज्वालामुखियों में दहाड़ती है, तो कभी चाँदनी में अठखेलियाँ करती है। यौवन के श्रृंगार और घनसार, […]