एचआईवी एड्स का शिकार हो रहे स्कूल बच्चे- ये गलती आप न करें:- देश के कई राज्यों में युवाओं और किशोरों में एचआईवी संक्रमण बढ़ने की खबरें चिंताजनक हैं। बिहार से आई रिपोर्ट के मुताबिक, HIV पॉजिटिव मरीजों में बड़ी संख्या 15–29 वर्ष के युवाओं की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जानकारी की कमी, गलत धारणा और समय पर जांच न कराना इसका बड़ा कारण है।
इसी बीच चौंकाने वाली बात यह है कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी अब HIV संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं, और इसका मुख्य कारण है – “लापरवाही + जागरूकता की कमी + गलत जानकारी”।
एड्स (एडवांस्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम) एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है, जो न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि समाज के ताने-बाने में भी सेंध लगाता है. हर साल एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य एचआइवी एड्स के प्रति जागरूकता फैलाना और इस लाइलाज बीमारी से बचाव के उपायों को साझा करना है. पटना और बिहार में एचआइवी के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई है, लेकिन अभी भी मरीजों की संख्या कम नहीं है. बिहार एड्स कंट्रोल सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 1 लाख 49 हजार 747 लोग एचआइवी संक्रमित हैं.
एचआइवी पॉजिटिव सोच से हराएं…
पटना सहित पूरे बिहार में एचआइवी के प्रति जागरूकता बढ़ी है, लेकिन संक्रमितों की संख्या में कोई कमी नहीं आयी है. बिहार एड्स कंट्रोल सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में इस समय 1,49,747 लोग एचआइवी से संक्रमित हैं, जिनमें से 87,304 का इलाज सरकारी और निजी अस्पतालों में चल रहा है. चिंताजनक बात यह है कि कम उम्र के युवक और युवतियां भी एचआवी संक्रमण की जद में आ रही हैं.
चिंताजनक : एचआइवी संक्रमितों में 60 प्रतिशत युवा
कुल संक्रमितों में युवक-युवतियों की हिस्सेदारी करीब 60 प्रतिशत है. इनमें पीएमसीएच, आइजीआइएमएस व एनएमसीएच में 5000 व पटना के बाकी सेंटरों में करीब 2500 मरीजों का इलाज जारी है. इसके अलावा बाकी मरीजों का इलाज बिहार के अलग-अलग जिलों के एआरटी सेंटर में जारी है. वहीं इलाज कर रहे डॉक्टरों का मानना है कि एचआइवी पॉजिटिव होना जीवन का अंत नहीं है. एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी की मदद से संक्रमित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकते हैं.
15 सालों में छह लाख से ज्यादा लोगों ने ली मदद
डॉ रूपा मुक्ता चैरिटेबल ट्रस्ट की डॉ रूपा अग्रवाल और प्रोजेक्ट मैनेजर योगेंद्र चौबे ने बताया कि पिछले 15 सालों में संवाद हेल्पलाइन पर छह लाख से ज्यादा लोगों ने एचआइवी और संबंधित बीमारियों के बारे में जानकारी ली है. हेल्पलाइन ने बिहार के 38 जिलों में जागरूकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए है, जिसके परिणामस्वरूप हर जिले से कॉल आ रहे हैं. इस हेल्पलाइन के माध्यम से एचआइवी, टीबी, हेपेटाइटिस बी एंड सी, और एसटीडी जैसे रोगों से संबंधित विशेषज्ञ काउंसलिंग दी जाती है. हेल्पलाइन की मदद से लाखों जिंदगियां बचायी जा रही है, खासकर 26-40 साल के बीच के लोग सबसे अधिक कॉल करते हैं.
‘बाधाओं पर विजय, एड्स प्रतिक्रिया में परिवर्तन’ है थीम
इस साल एड्स डे का थीम है’ बाधाओं पर विजय, एड्स प्रतिक्रिया में परिवर्तन’. यह थीम साल 2030 तक एड्स को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए निरंतर राजनीतिक नेतृत्व, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और मानवाधिकार-केंद्रित दृष्टिकोणों का आह्वान करता है. कई दशकों की प्रगति के बाद, एआइवी प्रतिक्रिया एक दोराहे पर खड़ी है. आज के दौर में जीवन रक्षक सेवाएं बाधित हो रही हैं और कई समुदायों को बढ़े हुए जोखिमों और कमजोरियों का सामना करना पड़ रहा है.
फिर भी इन चुनौतियों के बीच, एड्स को समाप्त करने का प्रयास करने वाले समुदायों के दृढ़ संकल्प, लचीलेपन और नवाचार में आशा बनी हुई है. साल 2025 एड्स डे का थीम इसी बात को उजागर करता है कि कितनी जल्दी एड्स को दुनिया से समाप्त किया जा सके, वर्ल्ड एड्स डे का मुख्य उद्देश्य एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूकता फैलाना, टेस्टिंग के महत्व को समझाना और उपचार की उपलब्धता के बारे में लोगों को जानकारी देना है.
एचआइवी के लक्षण
- त्वचा का रंग खराब
- अत्यधिक थकान
- तेज बुखार व मुंह में
- तेजी से वजन में पर छाले
- सिरदर्द होना कमी आना
- मुंह या जननांगों
- गले में खराश छाले
- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
इन बातों को भी जानें
- एचआइवी के लक्षण अन्य बीमारियों के लक्षणों से मिलते-जुलते हो सकते हैं.
- इसलिए यदि आपको कोई संदेह है, तो डॉक्टर से संपर्क करें और जांच कराएं
- आप बिना किसी लक्षण के भी आप किची पोजिदिक्षा सकते हैं.
- सही पता लगाने का एकमात्र तरीका है
एक्सपर्ट बोले –
प्रशासन की ओर से एचआइवी को हर महीने मिल रहा ₹1500 संक्रमितों
प्रशासन की ओर से एचआइवी संक्रमित व्यक्तियों को हर महीने 1500 रुपये की सहायता दी जाती है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हो सके, इसके अलावा, एचआइवी एंड एड्स प्रिवेंशन और कंट्रोल एक्ट के तहत, संक्रमित व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाती है. यह एक्ट यह निदेशक, बिहार राज्य भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी सिन्हा, संयुक्त मरीज के साथ भेदभाव न हो. हम सभी को यह समझना चाहिए कि एचआइवी एड्स नियंत्रण समिति के मरीजों को भी समाज में समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए, प्रशासन इस दिशा में लगातार काम कर रहा है और एचआइवी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए हर संभव मदद मुहैया करा रहा है.
सर्जरी के बाद मरीजों को सावधानी बरतने की जरूरत, इम्यूनिटी को करें बूस्ट
एचआइवी संक्रमित मरीजों को सर्जरी से पहले और बाद में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. चूंकि एचआइवी के मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, सर्जरी के दौरान उनके लिए अलग-अलग ऑपरेशन थियेटर का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, जो औजार और उपकरण सर्जरी में इस्तेमाल होते हैं, उन्हें पूरी तरह से डिस्पोज कर दिया जाता है, ताकि संक्रमण का खतरा न बढ़े. सर्जरी के बाद रोग प्रतिरोधक बूस्टर लेने की सलाह दी जाती है. आजकल, एचआइवी की दवाएं बहुत प्रभावी हो गयी हैं, और मरीज इन्हें नियमित रूप से लेकर सामान्य जीवन जी सकते हैं. इसके लिए उन्हें एआरटी सेंटर से दवाएं हर महीने लेनी चाहिए और दवाओं की खुराक कभी भी बंद नहीं करनी चाहिए.
ट्रांसजेंडर भी संक्रमण के शिकार
2023 24 के दौरान बिहार में 8675 ट्रांसजेंडर की जांच हुई, जिसमें की 70 ट्रांसजेंडर एड्स संक्रमित पाये गये. 2024-25 अक्तूबर महीने तक कुल 6827 ट्रांसजेंडर की जांच हुई, जिसमें अब तक 38 ट्रांसजेंडर संक्रमित पाये गये हैं. सरकार की ओर से ट्रांसजेंडर को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम भी चलाए जा रहे है.
- आज के समय 900 नये बच्चे पूरी दुनिया में हर दिन एड्स का शिकार हो रहे हैं.
- भारत में एड्स का पहला मामला 1986 में सामने आया था.
संक्रमण के कारणों की पहचान करता है एआरटी
नेशनल कंट्रोल सोसाइटी (नाको) और पीएमसीएच, आइजीआइएमएस का माइक्रोबायोलॉजी विभाग एआरटी सेंटर संचालित करता है. यहां एचआइवी संक्रमित की जांच के साथ ही बीमारी के कारणों की पहचान की जाती है. संक्रमण के कारणों में असुरक्षित यौन संबंध के अलावा सिरिज से नशा लेने वाले, होमोसेक्सुअल या समलैंगिक, टीबी संक्रमित व रक्तदान के दौरान जांच में मिले संक्रमित की अलग-अलग पहचान की जाती है.
निष्कर्ष — “बच्चों की सुरक्षा आपकी सोच से शुरू होती है”
HIV कोई शर्म की बात नहीं—
यह एक बीमारी है, और इसका इलाज और रोकथाम दोनों संभव हैं।
सबसे महत्वपूर्ण है—
सही जानकारी + खुली बातचीत + समय पर जांच।
याद रखें: एक छोटी सी लापरवाही बच्चे की पूरी जिंदगी बदल सकती है।
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