कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ कर लिया स्नान तो आपके खुल जाएंगे भाग्य:-सनातन धर्म में कार्तिक मास को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। यह महीना भगवान विष्णु के जागरण का काल होता है। मान्यता है कि श्रावण मास भगवान शिव का होता है, तो कार्तिक मास भगवान विष्णु का।
इस पूरे माह में स्नान, दान, दीपदान और व्रत का विशेष फल मिलता है।
और इस माह की पूर्णिमा — कार्तिक पूर्णिमा, सभी पूर्णिमाओं में सबसे श्रेष्ठ मानी गई है।
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
पुराणों में कहा गया है —
“कार्तिके पूर्णिमा येन स्नातं गंगायमुनादिषु।
तस्य पुण्यं न समं किंचित् वर्षकोटिशतैरपि॥”
अर्थात — कार्तिक पूर्णिमा के दिन यदि कोई व्यक्ति गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करता है, तो उसे लाखों वर्षों के तप के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा कल,
कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा 5 नवंबर को अश्विनी और भरणी नक्षत्र के युग्म संयोग में मनाई जाएगी। भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन कई धार्मिक आयोजन, पवित्र नदी में स्नान, पूजन और दान-धर्म करने का विधान है।
वर्ष के 12 मास में कार्तिक आध्यात्मिक एवं शारीरिक ऊर्जा संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। श्रद्धालु पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद सत्यनारायण प्रभु की कथा का श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप कर पापमुक्त होकर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करेंगे।
सर्वोत्तम मास • 5 नवंबर को अश्विनी और भरणी नक्षत्र का संयोग बन रहा
कार्तिक मास की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों में अति-उत्तम माना गया है। स्कंद पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है, वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान कर ले तो वह पूर्ण फल का भागी हो जाता है।
इस दिन गंगा स्नान से मिलता है पूरे वर्ष का फल
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीथों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी पापों का नाश हो जाता है। घर पर स्नान करने वाले जातक पानी में गंगाजल और हाथ में कुश लेकर स्नान करना चाहिए। इससे भी गंगा स्नान का ही फल मिलता है।
दीपदान से दस यज्ञ के बराबर पुण्य
कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की अपार कृपा बरसती है। इस दिन गंगा स्नान करने से व्याधियों का नाश एवं सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। भगवान नारायण ने अपना पहला मत्स्य अवतार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही लिया था। पूर्णिमा को भगवान विष्णु के निकट अखंड दीप दान करने से दिव्य कांति की प्राप्ति होती है।
साथ ही जातक को धन, यश, कीर्ति का लाभ भी मिलता है। पंडित राकेश झा ने बताया कि गंगा स्नान के बाद दीप-दान करना दस यज्ञों के समान होता है। इस दिन अन्न, धन, वस्त्र, ऋतुफल आदि दान करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।
शत्रुओं पर विजय के लिए भगवान कार्तिकेय के दर्शन का विधान
कार्तिक महीना भगवान कार्तिकय द्वारा की गई साधना का माह माना गया है। इस कारण से इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा है। नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर संपूर्ण सगुणों की प्राप्ति एवं शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करने का विधान है। पूर्णिमा को स्नान, अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं।
करगिल चौक से गायघाट तक नहीं चलेंगे वाहन
आज रात 11 बजे से कल दिन के 11 बजे तक जिले में बड़े मालवाहक वाहनों का प्रवेश नहीं होगा
कार्तिक पूर्णिमा बुधवार 5 नवंबर को है। इसको लेकर शहर की यातायात व्यवस्था बदली रहेगी। करगिल चौक से गायघाट तक किसी प्रकार के वाहनों का परिचालन नहीं होगा। अशोक राजपथ में करगिल चौक से गायघाट तक सभी इंट्री प्वाइंट बंद रहेंगे। खजांची रोड से पटना कॉलेज, साइंस कॉलेज तक श्रद्धालु वाहनों की पार्किंग के लिए जा सकेंगे। वहीं करगिल चौक से शाहपुर तक सभी प्रकार के वाहनों का परिचालन होगा।
ट्रैफिक एसपी ने बताया कि
4 नवंबर की रात 11 बजे से 5 नवंबर के दिन 11 बजे तक पटना जिले में बड़े मालवाहक वाहनों का प्रवेश नहीं होगा। घाटों के आसपास पार्किंग की व्यवस्था की गई है। पटना जंक्शन, जीपीओ होते हुए बेली रोड से दानापुर या खगौल जाने वाली नगर सेवा की बस करगिल चौक पर नहीं आकर गांधी मैदान गेट नं-10 के अन्दर पार्क की जाएगी।
जेपी सेतु पर यातायात की व्यवस्था
जेपी सेतु पर 4 नवंबर की रात 11 बजे से 5 नवंबर के दिन के 11 बजे तक सोनपुर से पटना की तरफ यातायात बंद रहेगा। इस दौरान भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा। जेपी सेतु से पटना की ओर आने वाले वाहन सीधे एप्रोच पथ से अशोक राजपथ पर जाएंगे। छपरा, सोनपुर, हाजीपुर जाने वाले लोग गांधी सेतु का प्रयोग कर सकते हैं। जेपी सेतु पूर्वी घाट पर जाने वाले वाहन रेलवे ब्रिज के पूरब बने रास्ते से नीचे उतरकर खाली जगह में वाहन पार्क करेंगे।
चार धाम यात्रा के बाद पुष्कर स्नान
देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले पुष्कर स्नान के बारे में मान्यता है कि इसके बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है। पूरे वर्ष में इन पांच दिनों में पुष्कर तीर्थ का विशेष महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह महत्व और भी बढ़ जाता है। इन पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से भी जाना जाता है।
देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले पुष्कर स्नान की महत्ता इससे ही सिद्ध होती है कि इसके बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है। पूरे वर्ष में इन पांच दिनों में पुष्कर तीर्थ का विशेष महत्व है।
पुष्कर से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पृथ्वी लोक पर यज्ञ करने का निश्चय किया। उस समय पृथ्वी पर वज्रनाभ नाम के असुर का आतंक चारों ओर फैला हुआ था। वह बच्चों को जन्म लेते ही मार देता था। उसके आतंक की कहानियां ब्रह्मलोक तक पहुंची। ब्रह्माजी ने उस दैत्य का अंत करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने कमल पुष्प से उस दैत्य पर भीषण प्रहार कर उसका अंत कर दिया। उस पुष्प का प्रहार इतना प्रचंड था कि जहां वह गिरा, उस स्थान पर एक विशाल सरोवर बन गया। पुष्कर यानी कमल और कर यानी हाथ। हाथ से पुष्प द्वारा किए गए आघात से इस सरोवर के निर्माण होने के कारण इसका नाम पुष्कर सरोवर हो गया। ब्रह्माजी द्वारा यहां यज्ञ करने से इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का पुण्य भी प्राप्त हुआ।
तीर्थराज पुष्कर के महत्व को दर्शाती कई कथाएं हैं। भारत में सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर होने के पीछे भी एक कथा है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह कथा देवी सावित्री के ब्रह्माजी को शाप देने से जुड़ी है।
एक समय ब्रह्माजी ने पुष्कर को यज्ञ क्षेत्र के रूप में चुना।
यज्ञ के लिए निश्चित मुहूर्त पर जब देवी सावित्री वहां नहीं पहुंचीं, तो ब्रह्माजी ने गायत्री नाम की एक गुर्जर कन्या से विवाह करके यज्ञ संपन्न किया। देवी सावित्री जब वहाँ पहुंचीं, तो अपने स्थान पर गायत्री को बैठा देखकर क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया कि संपूर्ण पृथ्वी पर पुष्कर को छोड़कर उनकी कहीं भी पूजा नहीं होगी। संपूर्ण विश्व में ब्रह्माजी के इस एकमात्र मंदिर के कारण ही मंदिरों की नगरी पुष्कर की विशिष्ट पहचान और महत्ता है|
ऐसी मान्यता है कि
यहां किया हुआ जप-तप और पूजा-पाठ अक्षय फल देने वाला होता है। विशेष रूप से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक। पुष्कर यात्रा का पूर्ण फल यज्ञ पर्वत पर स्थित अगस्त्य कुंड में स्नान करने पर ही मिलता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार तीथों के गुरु पुष्कर की महत्ता इससे ही स्पष्ट हो जाती है कि पुष्कर स्नान के बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है।
अजमेर शहर से 11 किलोमीटर दूर 52 घाटों पुष्कर अपनी मनोहारी छटा के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
पुष्कर सरोवर भी तीन हैं। ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के श्रीविष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं, लेकिन पुष्कर का अनंत काल से महत्व ज्येष्ठ पुष्कर के कारण ही है। पुष्कर मंदिर से जुड़ी तमाम बातों में एक खास बात यह भी है कि इस मंदिर के पुरोहित गुर्जर समुदाय से होते हैं, जिन्हें ‘भोगा’ के नाम से जाना जाता है।
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