ढहते विश्वास- सातकोडी होता
संक्षिप्त परिचय- मयूरभंज उड़ीसा में उत्पन्न सातकोड़ी होता उड़िया साहित्य के एक मुख्य कलाकार हैं। इन्होंने सरकार के उत्तरदायित्वपूर्ण पदों को सुशोभित करते हुए उड़िया साहित्य को समृद्ध बनाया। इनकी कथा में उड़िया समाज और उड़ीसा का जनजीवन प्रत्यक्ष प्रतिबिम्ब है। यह कहानी राजेन्द्र प्रसाद मिश्र जी के द्वारा अनुदित है।
लेखक-परिचय
लेखक-परिचय- उड़िया भाषा के प्रमुख कथाकार सातकोड़ी होता का जन्म उड़ीसा प्रांत के मयूरभंज मयूरभंज नामक स्थान में 1929 ई० को हुआ था। शिक्षा समाप्ति के बाद इन्होंने सर्वप्रथम भुवनेश्वर में भारतीय रेल यातायात सेवा के अन्तर्गत रेल समन्वय आयुक्त पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद उड़ीसा सरकार के वाणिज्य एवं यातायात विभाग में विशेष सचिव तथा उड़ीसा राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया ।
होता जी की अबतक दर्जन भर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इनकी कहानियों में उड़ीसा का जीवन गहरी आंतरिकता के साथ प्रकट हुआ है। प्रस्तुत कहानी ‘ढहते विश्वास’ राजेन्द्र प्रसाद मिश्र द्वारा संपादित एवं अनूदित है जो ‘उड़िया की चर्चित कहानियाँ’ (विभूति प्रकाशन, दिल्ली) से साभार संकलित है।
पाठ-परिचय
पाठ-परिचय-सातकोड़ी होता द्वारा लिखित तथा राजेन्द्र प्रसादु मिश्र द्वारा संपादित एवं अनूदित प्रस्तुत कहानी ‘ढहते विश्वास’ में प्राकृतिक प्रकोप से उत्पन्न समस्या पर प्रकाश डाला गया है। बाढ़ एवं सूखा से त्रस्त जीवन धैर्य तथा साहस के साथ इन समस्याओं का मुकाबला करता है, लेकिन लोगों का विश्वास तब ढहने लगता है जब बाढ़ का पानी किनारों को लाँघकर गाँव-घरों को अपने आगोश में लेते आगे बढ़ता है, तो लोगों का भरोसा टूटने लगता है। लोगों का माँ चण्डेश्वरी पर जो विश्वास था, वह भी क्षीण होने लगता है। उन्हें लगता है कि मानो सृष्टि की शुरूआत में लोगों को दिए हुए सारे वायदे खोखली आवाजों में तब्दील हो गए हैं। बार-बार किसी पर विश्वास करके इन्सान ठगा जा चुका है। उसके साथ विश्वासघात हुआ है। अतः अब कोई व्यक्ति किसी पर विश्वास करना नहीं चाहता।
सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘ढहते विश्वास
सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘ढहते विश्वास’ चिंतन प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार सातकोड़ी होता ने उड़ीसा के जन-जीवन का चित्र प्रस्तुत किया है । कहानी एक ऐसे परिवार की की आर्थिक दुर्दशा से शुरू होती है जिसका मुखिया लक्ष्मण कलकत्ता में नौकरी करता करता है, किन्तु उसकी कमाई से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो पाता, इसलिए उसकी पत्नी लक्ष्मी तहसीलदार साहब के घर का छिटपुट काम करके उस कमी को पूरा करती है। उसके पास एक बीघा खेत भी है, लेकिन बाढ़, सूखा तथा तूफान के कारण वह खेत दुःख का कारण बन जाता है।
कई दिनों से लगातार वर्षा होते देखकर लक्ष्मी इस आशंका से भयाक्रांत हो गई कि इस बार भी बाढ़ आएगी। तूफान से घर टूट गया था।
कर्ज लेकर किसी प्रकार घर की मरम्मती कराती है। तूफान एवं सूखा से त्रस्त होते हुए भी हल किराए पर लेकर खेती करवाती है। सूखा होने के कारण धान के अंकुर जल गए, फिर भी हार न मानकर बारिश होने पर रोपनी करने का इन्तजार किसान कर रहे थे। लेकिन लगातार वर्षा होने के कारण बाढ़ आने की चिन्ता ने लोगों की नींद हराम कर दी थी। लक्ष्मी का घर देवी नदी के बाँध के नीचे था। लक्ष्मी उसी समय ससुराल आई थी, जब दलेइ बाँध टूटा था। बाढ़ की भयंकरता के कारण लोगों की खुशी तुराई के फूल की तरह मुरझा गई। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था ।
ढहते विश्वास
उस दर्दनाक स्थिति की अनुभूति लक्ष्मी को हो चुकी थी। इसीलिए वह यह सोचकर सिहर उठती है कि यदि पुनः दलेइ बाँध टूट जाए तो इस विपत्ति का सामना वह कैसे पर पाएगी, क्योंकि तूफान एवं सूखा ने कमर तोड़ दी है। पति परदेश में है। तीन बच्चे हैं। लक्ष्मी वर्षा की निरन्तरता से भीषण बाढ़ आने की बात सोचकर दुःखी हो रही थी। उसके पति लक्ष्मण कलकत्ता की नौकरी से कुछ पैसे भेज देता था और वह स्वयं तहसीलदार का छिटपुट काम करके बच्चों के साथ अपना भरण-पोषण कर रही थी।
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भूमि की छोटा टुकड़ा तो प्रकृति-प्रकोप से ही तबाह रहता है। दलेइ बाँध टूटने की विभीषिका तो वह पहले ही देख चुकी थी। उस भयानक अनुभूति रह-रहकर जाग उठती थी। तूफान सूखा और बाढ़ इन तीन-तीन प्राकृतिक विपदाओं से कौन रक्षा करे ? कटक से लौटा गुण निधि महानदी की इस बाँध की सुरक्षा के लिए गाँव युवकों को स्वयंसेवी दल बनाकर बाँध की सुरक्षा में सब संलग्न थे। लक्ष्मी भी बड़े लड़के को बाँध पर भेजकर दो लड़कियों और एक साल के लड़का के साथ घर पर है।
पूर्व में ऐसी भयानक स्थिति को देखकर भी लोग यहाँ खिसके नहीं। शायद इसी प्रकार नदियों के किनारे नगर और जनपद बनते गये। लक्ष्मी भी पूर्व के आधार पर कुछ चिउड़ा बर्तन कपड़ा संग्रह कर लिया। गाय, बकरियों के पगहा खोल दिया अच्युत तो बाँध पर ही जूझ रहा था। पानी ताड़ की ओर बढ़ा और शोर मच गया। गुणनिधि-काम में जुटा था। लोगों में जोश भर रहा था और लोगों को ऊँचे पर जाने का निर्देश भी दे रहा था। सब लोगों का विश्वास आशंका में बदल गया। लोग काँपते पैरों से टीले की ओर भागे।
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स्कूल में भर गये। देवी स्थान भी भर गया। लोग हतास थे अब तो केवल माँ चंडेश्वरी का ही भरोसा है। लक्ष्मी भी अच्युत भी आशा छोड़कर जैसे तैसे बच्चों को लेकर भाग रही थी क्योंकि बाँध टूट गया था और बाढ़ वृक्ष घर् सबों को जल्दी-जल्दी लील रही थी। शिव मन्दिर के समीप पानी का बहाव इतना बढ़ गया कि लक्ष्मी बरगद की जटा में लटककर पेड़ पर चढ़ गई। वह कब बेहोश हो गई।
कोई किसी की पुकार सुननेवाला नहीं। टीले पर लोग अपने को खोज रहे थे। स्कूल भी डूब चुका था। अतः लोग कमर भर पानी में किसी प्रकार खड़े थे। लक्ष्मी को होश आने पर उसका छोटा लड़का लापता था। वह रो-चिल्ला रही थी, पर सुननेवाला कौन था ? लोगों का विश्वास देवी-देवताओं पर से भी उठ गया क्योंकि इनपर बार-बार । विश्वास करके लोग मात्र ठगे जाते रहे हैं। लक्ष्मी ने पुनः पीछे देखा पर उसकी दृष्टि शून्य थी। फिर भी एक शिशु शव को उसने पेड़ की तने पर से उठा लिया और सीने से भींच लिया, यद्यपि वह उसके पुत्र का शव नहीं था।
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