बेहतर जीवन चाहते हैं – आमतौर पर हमारी धारणा यही होती है कि प्रत्येक काम को करने का सही और गलत तरीका होता है। परिवार, स्कूल और सामाजिक स्तर तक हर जगह किसी अन्य के काम करने के तरीके को मिसाल की तरह हमारे सामने पेश किया जाता है।
आज से इन नियमों का करें पालन
हम भी अपने मन में सही और गलत की धारणा बना लेते हैं। मसलन, पढाई कहां तक करनी चाहिए, शादी की सही उम्र क्या है या बच्चे किस उम्र तक हो जाने चाहिए जैसे प्रश्नों के निश्चित उत्तर हैं, जिन्हें सभी स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन समय के साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आ रहा है और वह मानने लगे हैं कि एक ही काम को करने के अलग-अलग बहुत सारे तरीके भी हो सकते हैं। इतना ही नहीं, यह भी है कि कोई नया रास्ता चुनने के बाद भी कहीं-न-कहीं एक अहसास रहता है कि उस काम को करने का सही तरीका शायद कुछ और है।
कुछ नया करने से पहले हम पूरी रणनीति बनाते हैं
बेशक, कुछ नया करने से पहले हम पूरी रणनीति बनाते हैं, पर जीवन कभी एक ढरें पर नहीं चलता है। ऐसे मे क्या वास्तव में इतनी तैयारी की जरूरत होती है ? मुझे औचक स्थितियों में ढलना नहीं आता था, इसलिए सब कुछ अपने नियंत्रण में रखना अच्छा लगता था। यानी कहीं जाने से पहले वहां के मौसम, माहौल, साथ जाने वाले लोगों, वापसी के समय आदि की पूरी जानकारी रखती थी। इस कारण बेचैन भी रहती थी।
दैनिक कार्यों की सूची
मैं तब तक चैन से नहीं बैठती थी, जब तक मैं अपने रोजमर्रा के सारे काम पूरे ना कर तूं। नौकरी करते समय भी मैंने दिन-रात एक करके मेहनत की और स्वयं को पूरी तरह अपने काम में झोंक दिया। लेकिन उस समय जी तोड काम करना ही जीवन जीने का सही तरीका लगता था।
मां के रूप में अनुभव
समय एक सा नहीं रहता। अब मैं अपने तरीके से जीवन जी सकती हूँ। अपने बेटे को मैं एक अकेली मां के रूप में पाल रही हूं और सारा दिन उसके साथ रहती हूं। लेकिन इसके बावजूद मुझे लगता है कि मुझे अपने बेटे को और ज्यादा समय देना चाहिए।
बेहतर इनसान बनें
एक जागरूक इनसान के रूप में मैं जीवन का प्रत्येक अनुभव लेना चाहती हूं ताकि स्वयं को और ज्यादा बेहतर बना सकूं। दोस्तों के साथ घूमना, किताबें पढ़ना, समाज के लिए कुछ अच्छा करना, बागवानी और खाना पकाना ऐसे काम हैं, जो मुझे खुशी देते है, लेकिन ये सारे काम एक साथ कर पाना संभव नहीं है।
करें डर का सामना
मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ ऐसा किया है, जिसकी में कल्पना भी नहीं का सकती थी। अकेले आगे बढ़ना, अपने बेटे को जन्म देना, बहुत से जहरीले रिश्तों को खत्म करना, नई नौकरी करना और अपनी कमजोरियों पर काबू पाना कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें करके मुझे खुद पर गर्व होता है। असल में, जीत डर का सामना करने के बाद ही हासिल होती है। बिना संघर्ष किए सफलता का पूरा रस नहीं मिलता।
जैसे कि बिना अंधेरे के रोशनी नहीं होती, बिना वियोग के प्रेम का महत्व नहीं समझ आता या बिना पीड़ा के सुख की अनुभूति नहीं की जा सकती है। लेकिन, सिर्फ सही समय का इंतजार करते रहने से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। आपका फैसला चाहे जो भी हो, लोग बिन मांगी राय देते ही हैं, लेकिन आप सभी को खुश नहीं रख सकते हैं इसलिए बेहतर यही होगा कि स्वयं पर ध्यान दिया जाए और जो सही लगे, उसी को पूरा किया जाए।
बदलाव के प्रति तैयारी
सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव, बदलाव आते हैं। जो समय आज है, यो कल नहीं रहेगा, इसलिए बदलाव के प्रति स्वयं को तैयार रखना जरूरी है। पर, इसका अर्थ यह नहीं है कि आप आज अपने जीवन के बारे में कोई योजना ही न बनाएं। आपको योजना बनाने का पूरा अधिकार है, पर समय व परिस्थिति के हिसाब से अपनी योजना में बदलाव लाने का सयंम व कौशल भी चाहिए।
याद रखिए, आपसे बेहतर आपके जीवन के बारे में कोई अन्य निर्णय नहीं ले सकता। ये आप ही जानते हैं कि आप कैसा अनुभव करते हैं और किसी कार्य को कितने अच्छे तरीके से कर सकते हैं। दूसरों से सलाह लेने में बुराई नहीं, पर अंतिम निर्णय आफ्का होना चाहिए। कोई अन्य किस गति से आगे बढ़ रहा है, इस बात से विचलित होने का अर्थ नहीं, क्योंकि किनहीं दो लोगों की स्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं। सब कुछ अपने नियंत्रण में लेने की बजाय खुद पर भरोसा स्खें और अपने हिसाब से आगे बढ़ें।
परिवर्तन संसार का नियम है
समय कभी एक सा नहीं रहता है और प्रत्येक दिन एक नया अहसास लेकर आता है। आप चाहे कितना मर्जी नियम बनाने का प्रयास कर लें, लेकिन हमेशा उसके अनुसार चलना असंभव है। यानी सारे काम अपने नए नियमों के हिसाब से पूरे कर पाना बेहद अव्यावहारिक सी बात है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर इसे सरल बनाया जा सकता है।
- प्राथमिकताओं के हिसाब से कार्यों का निर्धारण करें और एक बार में सबसे महत्वपूर्ण दो-तीन काम ही निबटाएं।
- ऐसे कार्य जो जरूरी तो है, पर तुरंत नहीं करने हैं, उनकी एक अलग सूची बनाएं और हर महीने किसी एक काम को बाकी कार्यों के साथ निबटा लें।
- यदि कोई काम कठिन लग रहा हो तो छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करें और एक बार में काम पूरा करने की बजाय थोड़ा-थोड़ा करके पूरा करें।
- यकीन रखें कि जो वास्तव में जरूरी है वो जरूर पूरा होगा क्योंकि आने वाला काल आज से बेहतर और उम्मीदों से भरा हुआ होगा।
आप जानते हैं क्या है बेहतर
आपने अपने जीवन में ऐसा बहुत कुछ किया होगा, जिसकी आपने अपने लिए कल्पना भी नहीं की होगी। कितनी ही ऐसी कमजोरियों को खुद से दूर किया होगा, जिस पर आज आपको गर्व होता है। और इसी प्रक्रिया में यह समझ आता है कि जो समय आज है, वह हमेशा वैसा नहीं रहेगा।
खुद से इश्क नहीं आसां
इन दिनों हर कोई खुद से प्रेम करने पर जोर देता है। मानो खुद से प्रेम करते ही हमारी सब समस्याएं हल हो जाएंगी। पर दिक्कत है कि हम दूसरों के संग रह लेते हैं, अपने साथ नहीं रह पाते। दूसरों से प्रेम अगर आसान नहीं, तो खुद से प्रेम कर पाना हमारे लिए और कठिन होता है। क्यों? आइए जानें …
खुद से इश्क करना सीखो बरखुर्दार
पहले, खुद से इश्क करना सीखो बरखुर्दार। आसान नहीं है खुद का होना’ – इतना कहकर उन्होंने लड़के के कंधे से हाथ हटाया और वे दोनों आगे बढ़ गए। पर, मैं उन बुजुर्ग के कहे शब्दों में अटक गई। हमारी सारी दिक्कतें, शिकायतें तो दूसरों को समझने समझाने की होती हैं। जहां सब एक-दूसरे पर आत्ममुग्धता का ठप्पा लगाए रहते हैं, वहां खुद से इश्क क्या कोई अलग बात है? हर साल सेल्फ लव पर ढेरों किताबें आती हैं।
गुड मॉर्निंग, गुड नाइट संदेशों में खुद से प्यार करने को कहती एक से एक सुंदर, जोरदार पंक्तियां हम एक दूसरे को भेज रहे हैं। फिर क्यों, खुद का होना इतना कठिन है? लाइफ कोच व स्तंभकार जॉन एमोडियो कहते हैं, ‘प्लूटो ने कभी कहा था कि हर व्यक्ति अपने भीतर एक लड़ाई लड़ रहा है, हमें सबके साथ उदारता से पेश आना चाहिए। यह सलाह हमें खुद पर भी लागू करनी चाहिए ! कौन ऐसा है, जिसमें कमियां नहीं हैं या जिन्होंने धोखा और चुनौतियां नहीं देखी, अपनों को नहीं खोया। खुद को प्रेम किए बिना प्यार का कोई चक्र पूरा नहीं हो सकता।’
मुझसे बुरा न कोई
दो बातें हैं जो खुद से प्यार करना मुश्किल बना देती हैं। एक, हर समय दूसरों से तुलना। दूसरा, कमियों के लिए हर समय खुद को कोसते रहना। हालांकि, इसमें हमारे माहौल की भूमिका भी कम नहीं है। उपेक्षा, मारपीट व उलाहनों के साथ बड़े हुए बच्चों को अपने भीतर धंस चुके हीन भावों को छोड़ने में दिक्कत तो होती ही है। हर बढ़ते कदम पर शर्मिंदगी, संकोच और बीती गलतियों के कारण खुद को कमतर मानने का एहसास, आगे बढ़ने से पहले ही रोक लेता है। हम अपनी अच्छी बातों को ढंग से देख ही नहीं पाते। खुद से तमीज से पेश नहीं आते। जब तब स्वयं को मूर्ख, अयोग्य, बदसूरत बोलते रहते हैं, खुद को दूसरों की नजरों से देखने के आदी हो जाते हैं।
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