वेटर से हिरो बने इस एक्टर की कहानी आपको जीवन में सफल बना देगी:-सफलता कभी अचानक नहीं मिलती, और न ही किसी के हिस्से में यूँ ही आ जाती है। वह उन लोगों को मिलती है, जो अपने सपनों के लिए हर हाल में मेहनत करने का हौसला रखते हैं। आज हम एक ऐसे अभिनेता की कहानी लेकर आए हैं, जिसका सफर बताता है कि अगर इरादा साफ हो, तो कठिन रास्ते भी आसान हो जाते हैं।
यह कहानी है एक ऐसे नौजवान की, जिसने कभी वेटर की नौकरी, कॉपीराइटिंग जैसे छोटे-छोटे काम किए, बुरे दौर देखे, लेकिन सपनों को कभी नहीं छोड़ा — और आज वह बॉलीवुड के सफल कलाकारों में गिना जाता है।
लक्ष्य स्पष्ट हो तो जीवन होगा सफल
वर्ष 2008 में छपी एक किताब बहुत मशहूर हुई थी, जिसका नाम था ‘आउटलायर्स’। इसमें लेखक मैल्कम ग्लैडवेल ने बड़ी सफलता पाने वाले लोगों की गहराई से स्टडी करके नतीजे निकाले हैं। दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों के सफल व्यक्तियों का सर्वे करने के बाद वे एक नतीजे पर पहुंचे, जिसके लिए शब्द बना टेन थाउजेंड ऑवर्स रूल। यानी अगर आप सच में ही किसी भी क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं, तो 10 हजार घंटे प्रैक्टिस करें।
किताब कहती है कि
कम्पोजर, बास्केटबॉल प्लेयर, आइस स्केटर, कॉन्सर्ट पियानिस्ट, चेस प्लेयर या मास्टर क्रिमिनल- जो भी अपनी फील्ड एक्सपर्ट बने हैं, उन्होंने उसमें 10 हजार घंटे से में ज्यादा काम किया होता है।
निष्कर्ष क्या है? यह कि
किसी इंसान के पास चाहे जितनी स्किल्स हों, उसके पास भगवान की दी हुई कोई भी काबिलियत हो, कोई भी रातों-रात सफलता के सबसे ऊंचे शिखर पर नहीं पहुंचता। उसके लिए, एक खास दिशा में लंबे समय तक प्रैक्टिस की जरूरत होती है। मशहूर संगीतकार बीथोवेन से जब पूछा गया कि आपकी कामयाबी का राज क्या है तो बीथोवेन ने कहा 40 साल तक रोज 8 घंटे। कामयाबी रातों-रात नहीं मिलती।
अब जरा सोचिए, क्या हमने अपने मन में कोई तस्वीर बना ली है कि
आज से 10 साल बाद या 20 साल बाद या 40 साल बाद हम कहां पहुंचना चाहते हैं? अगर हम आज करेंगे, तो इतने सालों बाद नतीजा दिखेगा। जितनी जल्दी आखिरी तस्वीर साफ होगी, उतनी ही जल्दी हम सफर शुरू कर पाएंगे। और हमारे फैसले भी उतने ही सही दिशा में होंगे। हमारी स्पीड उतनी ही बढ़ेगी। और अगर हमारा लक्ष्य साफ नहीं है, तो हमारी पूरी जिंदगी दूसरों के लक्ष्य पूरे करने में ही निकल जाएगी। इसलिए ‘अंत’ और ‘शुरुआत’ स्पष्ट होना जरूरी है। यह नजरिया भी ध्यान में रखना चाहिए कि हम पूरी जिंदगी का निचोड़ क्या पाना चाहते हैं?
विदुर नीति में एक बहुत समझदारी वाली बात कही गई है- दिन में ऐसा काम करना कि रात को सोने से पहले हम संतुष्ट हों, साल के आठ महीने ऐसा काम करना कि
आखिरी चार महीने हम संतुष्ट रहें, जिंदगी के अगले पड़ाव में ऐसा काम करना कि बूढ़े होने पर हम संतुष्ट हों और जीते जी ऐसा काम करना कि मरने के बाद भी हम संतुष्ट रहें। नेपोलियन ने यूरोप के बड़े हिस्से को अपने शासन में ले लिया था।
उसके बाद भी उन्होंने कहा था- मैं इस दुनिया में कोई भी आराम खरीद सकता हूं,
लेकिन मैंने अपनी जिंदगी में खुशी के छह दिन नहीं देखे हैं। जीवन में सफलता और सफल जीवन-दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं। जिंदगी में कोई किसी क्षेत्र में शानदार सफलता हासिल कर सकता है लेकिन हो सकता है कि जिंदगी सफल न हो। अंत में व्यक्ति को पूर्णता का अनुभव नहीं होता है। इसलिए हमें शुरू से ही जिंदगी में ऐसा बड़प्पन दिखाना होगा।
हमें पैसे के पीछे आंख बंद करके भागने के बजाय परिवार और दोस्तों को समय देना होगा।
हमें सत्ता मिलने के बाद भी छोटे से छोटे लोगों से भी प्यार और अच्छे रिश्ते रखने होंगे। हमें दूसरों के लिए बिना किसी स्वार्थ के काम करना होगा। हमें सहनशीलता और माफी जैसे मूल्यों को अपनाना होगा। तभी हम जिंदगी में सफल होने के साथ-साथ सफलता का अनुभव कर पाएंगे। जीवन में हम जो भी कदम उठाएं, वे हमें नैतिकता और सच्चाई के रास्ते पर बनाए रखें।
वेटर रहे, कॉपीराइटर की नौकरी की, अब हैं बॉलीवुड स्टार
बॉलीवुड में रणवीर सिंह (40) मशहूर नाम हैं। उनकी एक्टिंग का हर कोई दीवाना है। फिलहाल रणवीर सिंह अपनी अपकमिंग फिल्म धुरंधर को लेकर चर्चा में है। हाल ही फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है, जिसने सोशल मीडिया पर धूम मचा रखी है। फिल्म में रणवीर के साथ और भी बड़े कलाकार शामिल हैं। रणवीर ने यहां तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया है।
जानते हैं उनकी संघर्ष से सफलता की कहानी……
रणवीर सिंह का जन्म 6 जुलाई 1985 को मुंबई में एक सिंधी परिवार में हुआ। पिता बिजनेसमैन हैं और मां अंजू गृहिणी। रणवीर का सपना बचपन से ही एक्टर बनने का था। लेकिन घर वाले चाहते थे कि रणवीर किसी बेहतर फील्ड में करियर बनाएं। रणवीर की महत्वाकांक्षा को देखते हुए उन्होंने रणवीर को अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन में बैचलर ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई के लिए भेजा, जहां उन्होंने एक्टिंग क्लासेस लीं। थिएटर को भी सब्जेक्ट बनाया। इस दौरान खर्चा उठाने के लिए वेटर की नौकरी तक भी की।
संघर्षः लगातार रिजेक्शन झेले, लुक्स को लेकर भी सवाल उठे
पढ़ाई पूरी करने के बाद रणवीर 2007 में मुंबई लौटे। यहां उन्होंने एडवरटाइजिंग एजेंसियों में कॉपीराइटर की नौकरी की। एक्टिंग के लिए लगातार ऑडिशन देने के बावजूद उन्हें रिजेक्शन मिल रहे थे। कई डायरेक्टर्स ने उन्हें ‘गुड लुकिंग न होने’ की वजह से रिजेक्ट भी किया।
करीब 3 साल तक रणवीर काम की तलाश में भटकते रहे, यहां तक कि
उन्होंने सोचा कि क्या वो सही कर रहे हैं। उनके पिता ने 50 हजार रुपए देकर उनका पहला पोर्टफोलियो बनवाया, लेकिन फिर भी ऑडिशंस में सिर्फ माइनर रोल्स के ऑफर आते थे। कोई फिल्मी बैकग्राउंड न होने की वजह से रणवीर ने कई बार एक्टिंग छोड़ने के बारे में भी सोचा। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और पोर्टफोलियो भेजते रहे, ऑडिशंस देते रहे।
शुरुआत: ऑडिशन में सिलेक्ट हुए, पहली मूवी भी हिट हुई
2010 में रणवीर ने यश राज फिल्म्स की ‘बैंड बाजा बारात’ के लिए ऑडिशन दिया। कई राउंड्स के बाद उन्हें लीड रोल मिला। शुरुआत में फिल्म की कमर्शियल अपील पर शक था, लेकिन यह सुपर हिट रही। ‘लुटेरा’, ‘राम-लीला’, ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी फिल्मों में लगातार इनोवेटिव रोल्स से वे तेजी से आगे बढ़े। आज रणवीर बॉलीवुड के साथ-साथ ब्रांड एंडोर्समेंट्स और इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स में भी शामिल हैं।
सफलता : 245 करोड़ रुपए नेटवर्थ, 5 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी मिले
रणवीर ने 5 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते हैं। उनकी 10 से ज्यादा फिल्में 100 करोड़ से ज्यादा कमा चुकी हैं। रणवीर का ‘मां कसम फिल्म्स’ नाम से प्रोडक्शन हाउस भी है। वे सबसे ज्यादा ब्रांड एंडोर्स करने वाले सितारों में शामिल हैं। रणवीर की नेटवर्थ 245 करोड़ रु. है। वे एक फिल्म के लिए 30-50 करोड़ रु. चार्ज करते हैं।
महानता को पाने का मानचित्र रचा
एक युवा के रूप में बेंजामिन फ्रैंकलिन तेज-तर्रार, कल्पनाशील और महत्वाकांक्षी तो थे, लेकिन उनमें अनुशासन की कमी थी। वे भली प्रकार से जानते थे कि उन्हें एक बेहतर मनुष्य बनना है, पर उनकी जिंदगी में दिशा नहीं थी-प्रतिभा थी, पर कोई मानचित्र नहीं था।
1726 की एक शाम समुद्री यात्रा से लौटते समय फ्रैंकलिन अकेले बैठे सोच रहे थे। उनके मन में एक प्रश्न उठ रहा था कि कोई मनुष्य वास्तव में सगुणी कैसे बनता है? दुनिया को दोष देने की बजाय उन्होंने स्वयं की परीक्षा लेनी शुरू की। उन्होंने ऐसे 11 गुणों की सूची बनाई, जो उन्हें बेहतर इंसान बना सकते थे
संयम, मौन, व्यवस्था, निश्चय, मितव्ययिता, परिश्रम, सत्यनिष्ठा, न्याय, स्वच्छता, शांति और विनम्रता। लेकिन उन्होंने इन सबको एक साथ साधने की कोशिश नहीं की। वे हर सप्ताह एक ही गुण चुनते और पूरे ध्यान से उसका अभ्यास करते। एक छोटी-सी तालिका में वे अपनी हर चूक को एक बिंदु से चिह्नित करते। उनका लक्ष्य पूर्णता नहीं, बल्कि निरंतर सजग प्रगति थी।
यह तालिका फ्रैंकलिन के लिए एक प्रेरणा थी। तालिका का हर बिंदु उनके लिए अपराध-बोध नहीं प्रगति का प्रमाण था। धीरे-धीरे उनमें अद्भुत परिवर्तन दिखाई देने लगे।
एक समय में एक सुधार…
मौन के अभ्यास से उनकी वाणी तीक्ष्ण हुई, परिश्रम ने उन्हें अधिक उत्पादक बनाया, सत्यनिष्ठा और न्याय ने उनके संबंध सुधारे, व्यवस्था और शांति ने उनका जीवन संतुलित किया। फ्रैंकलिन की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि महानता आकस्मिक प्रतिभा से नहीं आती। वह आती है छोटी-छोटी आदतों को निरंतर सुधारने से। उनके जीवन में यह शुरू हुआ था केवल एक छोटी-सी नोटबुक, एक समय में एक सुधार के निश्चय से।
निष्कर्ष
यह यात्रा बताती है कि सफलता उन्हीं को मिलती है जो टूटते नहीं, रुकते नहीं और हालातों से लड़ते रहते हैं।
अगर एक वेटर बॉलीवुड स्टार बन सकता है, तो आप भी अपने क्षेत्र में चमक सकते हैं — बस ईमानदार मेहनत और साफ लक्ष्य चाहिए।
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