कोचिंग की सच्चाई जान चौंक जाएंगे – डार्क सिक्रेट ऑफ कोचिंग:- साल देशभर सेकरीब ढाई लाख बच्चे ● डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना लेकर कोचिंग करने राजस्थान के कोटा शहर आते हैं। लेकिन उनमें से मुट्ठी भर ही छात्र सफल हो पाते हैं। यानी यहां आना भर ही सफलता की गारंटी नहीं होता।
शहर से छात्रों की जिंदगी हार जाने की खबरें
ऐसे में जाहिर है युवाओं पर दबाव जरूरत से ज्यादा होता होगा। दबाव भी ऐसा कि आए दिन इस शहर से छात्रों की जिंदगी हार जाने की खबरें आती रहती हैं। ऐसे में सवाल यह भी मन में आता है कि ऐसा कैसा दबाव बनता है, जो आत्महत्या के रास्ते पर ले जाता है। क्या ऐसा है कि उन्हें डॉक्टर- इंजीनियर के अलावा कोई विकल्प नहीं सूझता ? करियर विकल्पों से संबंधित एक सर्वे इसकी सचाई बयां करता है। सर्वे में पाया गया कि लगभग 93% छात्र केवल सात करियर विकल्पों के बारे में ही जानते थे। हालांकि डिजिटल मंचों ने छात्रों में जागरूकता बढ़ाई है, मगर पेरेंट्स की सोच में खास बदलाव नहीं आया है।
कच्ची उम्र की कच्ची समझ
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने जाने वाले ज्यादातर छात्रों की उम्र 15-17 के बीच होती है। मनोविशेषज्ञों की मानें तो उनकी ये उम्र हार्मोनल बदलाव के साथ शारीरिक व मनोवैज्ञानिक विकास की होती है। ऐसे में अकेले रहना, परिवार की अपेक्षाएं, हर दिन 13-14 घंटे की पढ़ाई, कड़ी प्रतिस्पर्धा के दचान के साथ रहना उनके लिए आसान नहीं होता। करीब 10 में से 2 चच्चे इस चिंता के शिकार होते हैं कि अगर उन्होंने अच्छा नहीं किया, तो क्या होगा?
ये नहीं आखिरी मंजिल
गोरखपुर की शिवांगी पाल ने 10वीं क्लास में डॉक्टर बनने का सपना देखा था। वो कहती है, ‘नीट के लिए पहला अटेंम्ट घर से ही दिया। बैंक नहीं बनी, तो 2017 में कोटा चली गई और पाया कि यहां की ती दुनिया ही अलग थी। मेरे जैसे हजारों बच्चे तैयारी कर रहे थे। सुबह सात बजे वलास शुरू हो जाती थी। हमारे ऊपर इतना दबाव था कि हम लोग टॉयलेट की दीवारों पर भी फॉर्मूलों के पोस्टर चिपकाए रखते थे। हर दिन इम्तेहान था।
कुछ महीनों बाद प्रेशर थोड़ा हल्का हुआ, क्योंकि हमें टाइम मैनेजमेंट समझ आया। मैंने कोटा में। कोचिन के दौरान दो बार नीट का एग्जाम दिया, मगर मेरी रैंक नहीं बन पाई। हार किसे अच्छी लगती है। दिल तो दुखा, पर मुझे अपनी सीमा पता चल गई। मेरे साथ सबसे अच्छी बात यह रही कि घर वालों ने भी मेरे फैसले में पूरा साथ दिया। नीट आखिरी मंजिल तो थी नहीं। मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था, इसलिए मैंने पहले खुद को थोड़ा टाइम दिया, फिर फीजियोथैरेपी में दाखिला ले लिया।’
अभिभावकों का भी संघर्ष
बीते कुछ साल से आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या बढी है। अगर सिर्फ इस साल की बात करें, ती कोटा में अब तक चार छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 28 के करीब था। ये आकड़े किसी को भी डराने के लिए काफी है। शायद इसीलिए अब पेरेंट्स बच्चों को हॉस्टल में रखने के बजाय किराये पर घर लेकर उनके साथ रहने को तैयार हैं।
नीट की तैयारी कर रही अपनी बेटी के साथ कोटा में रह रही संजू पाल कहती हैं,’ बीते साल की घटनाओं ने मुझे चिंता में डाल दिया था। इसलिए पति को घर पर छोड़ कर में बेटी के साथ रहने के लिए कोटा आ गई हूं। मैं यहां बेटी के साथ हूं और मेरे पति घर पर सभी काम खुद कर रहे है। ये समझ लीजिए अभिभावक के तौर पर ये हमारा भी संघर्ष है। इनकी मेहनत देखकर तो मेरे भी पसीने छूट जाते है। पहले ती में बीच-बीच में गांव चली जाती थी, मगर अब तो परीक्षा का समय नजदीक आ गया है। अब मैं और बेटी परीक्षा के बाद ही गांव लौटेंगे।’
-तोयज कुमार सिंह
कैसी होती है दिनचर्या…
कोटा में बीते दो साल से नीट की तैयारी कर रही मानसी सिह कोटा की दुनिया को एकदम अलम बताती है, जहां तनाव इसका एक अभिन्न अंग होता है। उनके शब्दों में, कोटा है, तनाव तो होगा ही। दरअसल, हमें जितना डर परीक्षा के प्रयास में असफल होने का है, उससे ज्यादा डर उन सवालों का है, जो लोग लौट कर जाने पर पूछेंगे। कैसी होती है यहां रहने वाले छात्र की दिनचर्या? इस पर वह कहती है, “कोटा एक अलग ही दुनिया है। यहां टाइमपास करने वाले भी बहुत है और गंभीर छात्रों की भी कोई कमी नहीं।
हमारा दिन सुबह तकरीबन साढ़े पांच बजे से शुरू हो जाता है। सात बजे पहली क्लास होती है। वहां तक पहुंचने के लिए जल्दी उठना पड़ता है। सुबह उठने से लेकर दोपहर एक बजे तक का टाइम देखते-देखते खत्म हो जाता है। उसके बाद लंब, बोडा आराम और फिर हम डीपीपी यानी डेली प्रैक्टिस पेपर सॉल्व करने में लग जाते है। ये काम 8 से 9 बजे के बीच खत्म होता है। उसके बाद खाना और फिर सोना। यही है कोटा की जिंदगी। कोचिग की छुट्टी वाले दिन तो कई छात्र लाइब्रेरी जाते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि वहां बच्चे सुबह छह बजे पहुंच जाते हैं और रात दस बजे निकलते हैं। इस तरह रोजाना लगभग 16-18 घंटे की पढ़ाई करने के लिए मजदूर होते हैं, जिससे मनोरंजन या विश्राम करने के लिए बहुत कम या कोई समय ही नहीं बचता है। ऐसे में तनाव होना लाजिमी ही है, खासकर जब घर से दूर अकेले रह रहे हों।’
क्यों बन रही गले का फंदा
आंखों में सफलता का सपना संजोए हजारों छात्र कोटा शहर। पहुंचते हैं। लेकिन यहां प्रतियोगिता का माहौल कुछ ऐसा है कि कई छात्र बचाव में अपनी जिंदगी अपने हाथों ही हार बैठते हैं। इस शहर से छात्रों की ऐसी खबरें आए दिन की बात हो गई हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस दबाव के बारे में जानना ही बचाव का तरीका है। । कोटा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे कुछ युवाओं से बात करके इसे समझने की हमने की कोशिश
सफल हुए छात्रों की जुबानी
मेहनत का कोई विकल्प नहीं
आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई सिंगापुर के बोस्टन कसल्टिम ग्रुप में प्रोजेक्ट लीडर का काम करने वाले अनुराग रवि शर्मा कहते हैं, ‘ में एनडीए में जाना बाहता था, पर पापा चाहते थे कि में इंजीनियर बनूं। इसलिए कोचिंग के लिए मुझे कोटा भेज दिया। चूंकि वहां टीचर्स पर सिलेबस पूरा करने का दबाव होता है, इसलिए वे जिस स्पीड से पढ़ाते हैं, छात्रों को उसी गति से आगे बढ़ने की जरूरत होती है। इससे बचने के लिए मैं दोस्तों के साथ ग्रुप स्टडी करता था। लेकिन जिनको दोस्तों व टीचर्स का सपोर्ट नहीं मिलता, उन्हें दिक्कत होती है। वहां किसी के पास इतना समय नहीं होता कि वो पढ़ाई में पीछे छूटने वाले छात्रों की मदद कर सके। मुझे यहां आकर महसूस हुआ कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं। यहां अपनी क्षमताओं को पहचानना जरूरी है।’
खुद को मजबूत बनाना पड़ता है
एक कंपनी में डेटा साइस मैनेजर के पद पर कार्यरत नोएडा के कनक कुमार भी कोटा से पढ़ चुके है। उनके अनुसार ‘बेशक वहां की परिस्थितिया अनुकूल नहीं थी, लेकिन उन्होंने यहां के दबाव में दलने की कोशिश की और सफल हुए। वह कहते है, कोटा में, जहां एक ओर हजारों छात्रों पर असफलता का डर हावी रहता है, तो दूसरी ओर कुछ अच्छा कर र गुजरने की उम्मीदें भी। शुरू- शुरू में मुझे परेशानी हुई, क्योंकि अपनों से दूर, पढ़ाई के दबाव भरे माहौल में सब कुछ खुद ही मैनेज करना था। मगर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, इसी सोच से मैंने खुद को मजबूत बनाया। विषय को समझने में जहां भी दिक्कत होती थी, क्लास के बाद मैं अपने टीचर्स से पूछ लेता था। इससे उनके साथ मेरा जुड़ाव बढ़ा और आत्मविश्वास भी। कुल मिलाकर आपको यहां खुद ही जगह बनानी होती है।
तनावमुक्त रहना जरूरी है ना
राजस्थान की सुरभि जैन, जिन्होंने ‘नीद’ नाम से एक ऐप लॉन्च किया है और बैंगलुरु में काम कर रही है, कहती है, ‘कोटा में जब मैंने पडमिशन लिया था, तो शुरू-शुरू में मेरे नंबर आछे नहीं आ रहे थे। । मेरे पेरेंटस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए मेरी पढ़ाई के लिए उन्होंने एजुकेशन लोन लिया था, फिर भी उन्होंने कभी भी मुझ पर पढ़ाई के लिए कोई दबाव नहीं डाला।
शायद उनका यह सपोर्ट ही था कि पहली बार में इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए जब मेरा चयन नहीं हुआ, तो मैं घबराई नहीं, बल्कि अपनी कोशिश जारी रखी। आखिर में मुझे आईआईटी मुंबई में एडिमशन मिल गया। कोर्स खत्म करते ही एक अच्छी कपनी में जॉब भी मिल गई। अब में खुद का काम कर रही हूँ, और खुश हूं। मेरे ख्याल से तनावमुक्त होकर पढ़ाई करें, तो सफलता मिलती ही है। जब कभी मेरे मन में बुरे विचार आते थे. मैं म्यूजिक सुनती या घरवालों से बात कर लेती थी।’
कुछ महत्वपूर्ण लिंक
BOARD NAME | BIHAR BOARD |
Whtsapp Channel | JOIN |
Telegram Channel | JOIN |
You Tube Channel | SUBSCRIBE |
Official Notification | CLICK HERE |
Official website | CLICK HERE |
इंटर में सबको मिल रहा है 10 अंक ग्रेस- कॉपी मूल्यांकन लगभग समाप्त
BSEB UPDATE
- मैट्रिक परीक्षा से पहले बडा बदलाव – मॉडल परीक्षा केंद्र तैयार
- बिहार बोर्ड कक्षा 1 से 11वीं तक की वार्षिक परीक्षा का रूटिन जारी
- मैट्रिक परीक्षा 2024 में जुता मोजा पहनकर आने पर रोक – एडमिट कार्ड फिर से जारी
- मैट्रिक परीक्षा 2024 के 35 परीक्षा केंद्र में बदलाव- एडमिट कार्ड फिर से जारी
- बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2024- प्रश्नपत्र उत्तर पुस्तिका जारी
- बिहार बोर्ड मैट्रिक इंटर परीक्षा के तुरंत बाद आयेगा रिजल्ट- नोटिफिकेशन जारी
- चहारदीवारी फांदे तो परीक्षा से होगें बाहर और जेल भी- बिहार बोर्ड ने किया बड़ा बदलाव
- इंटर परीक्षा देने जाने से पहले इन नियमों को जरूर पढ़ें
- जुता मोजा पहनकर जा सकेंगे मैट्रिक इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 के परीक्षार्थी
- ये नियम नहीं मानें तो परीक्षा से बाहर- बिहार बोर्ड मैट्रिक इंटर परीक्षा 2024
BSEB UPDATE
- मैट्रिक का कॉपी जांच एक मार्च से – मार्च में ही आयेगा रिजल्ट
- इंटर का कॉपी मूल्यांकन शुरू – होली से पहले रिजल्ट
- बिहार बोर्ड इंटर परीक्षा 2024 का रिजल्ट जल्द ही
- मैट्रिक का रिजल्ट मार्च में और अप्रैल से इंटर नामांकन शुरू
- बिहार बोर्ड मैट्रिक इंटर रिजल्ट – प्रैक्टिकल परीक्षा का अंक में गडबडी
- देखिए परीक्षा केंद्र पर क्या क्या लेकिर जा सकते हैं – मैट्रिक परीक्षा
- 50 मिनट पहले पहुंचे परीक्षा केंद्र पर – मैट्रिक परीक्षा के पहले बड़ा बदलाव
- मैट्रिक परीक्षा से पहले बडा बदलाव – मॉडल परीक्षा केंद्र तैयार
- बिहार बोर्ड कक्षा 1 से 11वीं तक की वार्षिक परीक्षा का रूटिन जारी
- मैट्रिक परीक्षा 2024 में जुता मोजा पहनकर आने पर रोक – एडमिट कार्ड फिर से जारी
ADMIT CARD
- बिहार बोर्ड इंटर परीक्षा 2024 का एडमिट कार्ड जारी – लिंक एक्टीव
- Inter Admit Card 2024 Download link | Bseb 12th Admit card 2024
- बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2024 का एडमिट कार्ड – करें डाउनलोड
- Matric Admit Card 2024 Download link | Bseb 10th Admit card 2024
- बिहार बोर्ड इंटर प्रैक्टिकल परीक्षा 2024 का एडमिट कार्ड जारी- करें डाउनलोड
- Bihar Board Inter Practical Admit Card 2024
- BSEB मैट्रिक परीक्षा 2024 – द्वितीय डमि एडमिट कार्ड जारी
- इंटर बोर्ड परीक्षा 2024- द्वितीय डमि एडमिट कार्ड जारी
- Bseb Matric Dummy Admit Card 2024 download link
- Bseb Inter Dummy Admit Card 2024 download link
ADMISSION
- बिहार बोर्ड फ्री JEE NEET कोचिंग योजना 2024- ₹24 हजार की छात्रवृत्ति
- खाली समय में इन टिप्स को अपनाकर आप भी बोलने लगेंगे अंग्रेजी
- अब राज्य भर के कॉलेज में नहीं होगा – इंटर की पढ़ाई – बड़ा बदलाव
- Bseb Free JEE NEET Coaching Scheme 2024- यहाँ से करें आवेदन
- बिहार बोर्ड फ्री JEE NEET कोचिंग के लिए 25 फरवरी तक आवेदन
- फ्री JEE NEET कोचिंग में बिहार बोर्ड के साथ CBSE ICSE बोर्ड के छात्र करे आवेदन
- बिहार बोर्ड इंटर सत्र 2023-25 में नामांकन फिर से शुरू – यहां से करें आवेदन
- Free (JEE/NEET) Coaching For Bseb Students- रिजल्ट जारी
- Free (JEE/NEET) Coaching के लिए 75 अंक वाले का रिजल्ट जारी
- OFSS 11th Spot Admission 2023-25