मछली- विनोद कुमार शुक्ल बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं हिन्दी
Class -10th

मछली- विनोद कुमार शुक्ल बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं हिन्दी

मछली- विनोद कुमार शुक्ल बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं हिन्दी:-

लेखक-परिचयं विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी, 1937 ई० को राजनाँद गाँव (छत्तीसगढ़) में हुआ था। ये वृत्ति के रूप में प्राध्यापक रहे। इंदिरा गाँधी कृषि वि० वि० में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम किए। दो वर्षों (वर्ष 1994-96 ई०) तक निराला सृजनपीठ को अतिथि साहित्यकार के रूप में रहे।

रचनाएँ –1. वह आदमी कोट पहनकर चला गया कोट की तरह (कविता संग्रह), 2. सब कुछ होना बचा रहेगा (कविता संग्रह), 3. अतिरिक्त नहीं (काव्य)

उपन्यास- 1. नौकर की कमीज, 2. खिलेगा तो देखेंगे, 3. दीवार में एक खिड़की रहती थी।

कहानी-संग्रह– 1. पेड़ पर कमरा, 2. महाविद्यालय इनके कई उपन्यासों को अनुवाद भारतीय भाषाओं में एक कविता संग्रह और एक कहानी संग्रह-पेड़ पर कमरा का इतालवी भाषा में हो चुका है।’नौकर की कमीज’ पर झिलम भी बनी है।

पुरस्कार रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992 ई०) दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान पुरस्कार (1997 ई०), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1997 ई०) में प्राप्त ।

विशेषताएँ-विनोद कुमार शुक्ल 20वीं सदी के एक चर्चित कवि हैं। धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, बनावट में जटिल। और अपने न्यारेपन के कारण शुक्लजी प्रिय कवि एवं कहानीकार है। इनकी जड़ें संवेदना और अनुभूति में थी और वह भीतर से पैदा हुई खासियत थी। इनकी भाषा की अपनी खूबी है। इनकी कविताओं में मौलिकता है। बहुआयामी दृष्टिकोण से युक्त इनकी रचनाएँ नयी पीढ़ी को दिशा देने का काम करेंगी।

इनकी कृतियाँ हिन्दी साहित्य के लिए धरोहर है। ये समसामयिक कवि है। इनके विचार इनकी रचनाओं में उभरकर हमें दिशा देता है। इस प्रकार विनोद कुमार शुक्ल आधुनिक दौर के प्रसिद्ध कवि, कहानीकार है। इनकी रचनाएँ हिन्दी के विकास में सहायक है। सारी रचनाएँ ज्ञान रत्न-भंडार है जिससे नयी पीढ़ी को सही दिशा मिलेगी ।

पाठ-परिचय प्रस्तुत पाठ ‘मछली’ कहानी संकलन ‘महाविद्यालय’ से ली गई है। इस कहानी में एक छोटे शहर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यथार्थ तथा संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद को भी स्पर्श करती है। घटनाएँ, जीवन-प्रसंग आदि के विवरण एक बच्चे की आँखों देखे हुए और उसी के मितकथन से उपजी सादी भाषा में है। कहानी का समन्वित प्रभाव गहरा और संवेदनात्मक है। अपनी प्रतीकात्मकता के कारण कहानी मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ती है।

मछली खरीदने के लिए बाजार जाना प्रस्तुत पाठ ‘मछली’ संवेदनापूर्ण कहानी है। है। उसमें मछली के माध्यम से लोगों के मनोभाव को व्यक्त किया गया है। बच्चे अपने पिता के साथ मछली खरीदने बाजार जाते हैं। तीन मछलियाँ खरीदी जाती हैं जिनमें एक खरीदने के वक्त ही मर गई थी।बच्चे झोले में मछलियों को रखकर गली से होकर घर वापस लौटते हैं। बूंदे पड़ने के कारण बाजार में भीड़ घट रही थी।

। बच्चे भी इसलिए दौड़ रहे थे कि मछलियाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में रखी तीन मछलियों में दो जीवित थीं, उनकी तड़प के झटके महसूस कर रहे थे। अचानक जोरों की वर्षा होने लगी। बच्चों ने झोले का मुँह इसलिए फैला दिया कि मछलियों में थोड़ी जान आ जाए, क्योंकि उनकी इच्छा थी कि उनमें से एक मछली कुएँ में पाली जाए और उसके साथ खेला जाए।

नरेन ने मछली को आँखों से परखा दोनों भींग चुके थे। संत ठंढ से काँपने लगा था। दोनों ने नहानघर में घुस अपनी-अपनी कमीज निचोड़ीं। नरेन ने संतू से कहा-अपन ऊपरवाली मछली पिताजी से माँग लेंगे। संतू मछली छूने से डर रहा था। नरेन मछली की आँखों में अपनी छाया देखना चाहता है। दीदी ने कहा था कि नदी मछली की आँख में अपनी परछाई नहीं दिखती। संतू से बना तो नरेन ने खुद देखा किंतु पता ही नहीं चला कि अपनी परछाइ भी था मछली की आँखों का रंग ।

मछली के प्रति दीदी का विचार-लेखक मछली की आँखों में अपनी छाया देखना चाहता था क्योंकि दीदी का कहना था कि मरी हुई मछली की आँखों में झाँकने से अपनी परछाई नहीं दीखती। इसलिए पहले संतू को झाँकने को कहा, किंतु उससे कोई जवाब नहीं मिला तब लेखक मछली को अपने चेहरे के समीप लाकर देखा तो उसे उसकी आँख में धुंधली-सी परछाई दिखी, लेकिन यह परछाईं थी या मछली की आँखों का रंग था, यह समझ नहीं पाया। इसके बाद दीदी को बुलाने को कहा, लेकिन दीदी के सोने की बात सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। माँ को मसाला पीसते देखकर दुःखी हो गया कि मछली आज ही कट जाएगी। संतू भी उदास हो गया।

मछली बनाने की तैयारी-नरेन ने दीदी को बुलाना चाहा तो पता चला कि दीदी सो रही है। माँ उधर मसाला पीस इतने में भग्गू आया और मछलियाँ ले गया। मछली पालने का उत्साह ठंडा पड़ गया। दोनों कमरे में गए दीदी लेटी हुई थी। गीले कपड़ों में देख नाराज हुई। संतू को अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए, नरेन को भी धुले कपड़े पहनने को कहा। दीदी ने ही संतू के बाल पोंछे, झाड़। दीदी को संतू टकटकी बाँधे देखता रहा।

पिता की प्रतिक्रिया

पिता की प्रतिक्रिया – भग्गू मछलियाँ काटने में लगा कि संतू ने एकमछली लेकर भागा । भग्गू दौड़ा। नरेन कमरे में गया। दीदी सिसक-सिसक कर रो रही थी शरीर सिहर रहा था। उधर भग्गू संतू से मछली छीनने में लगा था और इधर घर में पिताजी जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। दीदी की सिसकियाँ बढ़ गईं। शायद पिताजी ने दीदी को मारा था। पिताजी नरेन को घर में आने से रोकने को भग्गू से कह रहे थे। संतू सहमा खड़ा था। दीदी के सँवारे बाल बिखर गए थे। नरेन नहानघर में गया। बाल्टी उलट दी। उसे लगा कि पूरे घर से मछली की गंध आ रही है।

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