मोबाइल चलाने पर लगेगी रोक- डिजिटल क्रांति ने भारतीय छात्रों के संवाद करने, सीखने और लोगों से जुड़ने के तरीके को बदल दिया है. इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक लाखों छात्रों के दैनिक जीवन में प्रवेश कर चुके हैं. बच्चों और युवाओं की एक बड़ी संख्या रील और वीडियो बनाने में व्यस्त देखी जा सकती है.
मोबाइल चलाने पर लगेगी रोक
कई किशोर आज सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के तौर पर सक्रिय हैं और पहचाने जाते हैं. इसका एक स्याह पक्ष भी है, जिसमें रील बनाते हुए जानलेवा दुर्घटनाओं का शिकार होते युवा, फॉलोअर्स घटने के डर से अवसाद ग्रस्त एवं आत्महत्या की कगार पर पहुंच चुके इन्फ्लुएंसर, मोबाइल पर गेम खेलने की लत से बीमार होते बच्चे देखे जा सकते हैं.
अनिश्चितताओं से घिरी युवा आबादी
स्मार्टफोन ने 15 से 29 वर्ष के भारतीय युवाओं की विशाल आबादी को, जो इसकी 1.4 बिलियन जनसंख्या का 27.2 प्रतिशत है, बिना किसी सुरक्षा सीमा या दिशा-निर्देश के सोशल मीडिया की अनिश्चितताओं के सामने ला खड़ा किया है. सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से युवाओं का बाहरी दुनिया से संपर्क कम हो रहा है और वे अपनी प्रोफाइल में निरंतर खुश या सुंदर दिखने के दबाव और अधिक से अधिक लाइक या फॉलोवर पाने की बेचैनी से जूझ रहे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में गुमनामी बेहद क्रूर भूमिका निभा रही है. इसके नतीजे के तौर पर किशोरों और युवाओं में साइबर बुलिंग, अवसाद और आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं
आभासी दुनिया का बड़ा खतरा बढ़ता हुआ स्क्रीनटाइम
अपने 25वें जन्मदिन के ठीक पहले इन्फ्लुएंसर मीशा अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद उनकी बहन ने मीशा के आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट में लिखा- ‘मेरी छोटी बहन ने इंस्टाग्राम और अपने फॉलोअर्स के इर्द-गिर्द अपनी दुनिया बना ली थी, जिसका एकमात्र लक्ष्य एक मिलियन फॉलोअर्स तक पहुंचना और प्यार करने वाले प्रशंसक प्राप्त करना था.
मोबाइल चलाने पर लगेगी रोक
उसके फॉलोअर्स जब कम होने लगे, तो वह व्याकुल हो गयी और खुद को बेकार महसूस करने लगी. अप्रैल से, वह बहुत उदास थी, अक्सर मुझे गले लगाकर रोती थी, कहती थी, जीजी, अगर मेरे फॉलोअर्स कम हो गये तो मैं क्या करूंगी? मेरा करियर खत्म हो जायेगा.’ इस पोस्ट के कैप्शन में मीशा की बहन ने लिखा- ‘इंस्टाग्राम कोई वास्तविक दुनिया नहीं है और फॉलोअर्स असली प्यार नहीं है, कृपया इसे समझने की कोशिश करें.’
दिल्ली में एक 19 वर्षीय लड़के को रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करानी पड़ी, क्योंकि वह पबजी गेम खेलने की लत के कारण आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हो गया था. वह 12 घंटे से अधिक समय तक अपने कमरे में अलग-थलग रहा था.
ऑस्ट्रेलिया कर चुका है कानून पारित
ऑस्ट्रेलिया नवंबर 2024 में, 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने का कानून पारित कर चुका है. इसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स जैसी लोकप्रिय साइटों पर दुनिया की सबसे कठोर कार्रवाई माना जाता है. कानून पारित करते समय ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया के नुकसान से बचाने के लिए यह कानून आवश्यक हैं और कई अभिभावक समूहों ने भी इस बात पर सहमति जतायी है. यह बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को प्रतिबंधित करने का वैश्विक स्तर पर पहला प्रयास नहीं था, लेकिन 16 वर्ष की न्यूनतम आयु किसी भी देश द्वारा निर्धारित उच्चतम है.
न्यूजीलैंड में आया प्रतिबंध का प्रस्ताव
न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया है. उन्होंने कहा कि यह कानून सोशल मीडिया कंपनियों को यह सत्यापित करने के लिए बाध्य करेगा कि उपयोगकर्ता की आयु कम से कम 16 वर्ष हो, इसके बाद ही उन्हें अकाउंट बनाने की अनुमति दी जायेगी, अन्यथा उन्हें दो मिलियन न्यूजीलैंड डॉलर (1.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना भरना होगा.
मोबाइल चलाने पर लगेगी रोक
लक्सन ने कहा कि सोशल मीडिया से अच्छी चीजें आ सकती है, लेकिन यह युवाओं के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है और सामाजिक रूप से जिम्मेदार होने की जिम्मेदारी तकनीकी कंपनियों पर है. माता-पिता लगातार हमें बता रहे हैं कि वे अपने बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर बहुत चिंतित हैं और वे सोशल मीडिया तक बच्चों की पहुंच को प्रबंधित करने के लिए वास्तव में संघर्ष कर रहे हैं.
ग्रीस में स्क्रीन टाइम सीमित करने वाला एप
ग्रीस ने हाल ही में ‘किड्स वॉलेट’ एप लॉन्च किया है. ग्रीस सरकार द्वारा विकसित यह एप माता-पिता को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने की अनुमति देता है. यह एक राज्य संचालित मोबाइल एप्लीकेशन है, जिसके माध्यम से अभिभावक अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम की निगरानी करने के साथ-साथ डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया में उनकी एज वेरिफाइ कर सकते हैं.
सिंगापुर में लागू हुए सख्त नियम
सिंगापुर में इस साल फरवरी की पहली तारीख से प्री स्कूलों और स्कूलों में बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करने के लिए सख्त नियम लागू किये गये हैं. सिंगापुर सरकार की इस स्वास्थ्य पहल के तहत प्री स्कूल 18 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले नियम लागू करेंगे और 18 माह से छह वर्ष के बच्चों के लिए स्क्रीन का समय केवल शिक्षण और सीखने के उद्देश्यों तक सीमित रखा जायेगा.
आभासी दुनिया का बड़ा खतरा बढ़ता हुआ स्क्रीनटाइम
मोबाइल फोन से जरा नजर हटा कर देखे, तो आप पायेंगे- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर मीशा अग्रवाल ने 25वें जन्मदिन के ठीक पहले अपनी जान ले ली. गेमिंग की लत के कारण दिल्ली के एक किशोर की हाल ही में रीढ़ की सर्जरी की गयी है. बीते दिनों उत्तरकाशी में अपनी 11 वर्षीय बच्ची के साथ नदी में रील बनाने के दौरान एक महिला तेज बहाव में बह गयी. ऐसे अनगिनत सिलसिले हैं, जो लगातार जारी हैं. एक आभासी दुनिया है, जो बच्चों और युवाओं के लिए बेहद खतरनाक बनती जा रही है. इस खतरे को भांपते हुए अब ऑस्ट्रेलिया के बाद न्यूजीलैंड भी बच्चों के सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का कानून बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. पढ़े स्क्रीन से उपज रहे खतरों और उनसे बचने के उपायों पर केदित इस बार का इन दिनों..
स्क्रीन की लत का आंखों पर असर
- 2050 तक भारत में स्कूल जाने वाले 50% बच्चे निकट दृष्टि दोष से पीड़ित हो सकते हैं. एसोसिएशन ऑफ कम्युनिटी ऑसोल्मोलॉजिस्ट्स ऑफ इंडिया के डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही इस बारे में कोई पहल नहीं की गयी, तो देश के लगभग आधे स्कूली बच्चे निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) से ग्रस्त हो सकते हैं.
- समय तक उपयोग करने से 5-15 साल की आयु के एक-तिहाई बच्चे मायोपिया से हास्त ही सकते हैं.
- 23% भारतीय स्कूली बच्चों को मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) है यर्तमान में,
विशेषज्ञों की राय
- 2 साल से 12 साल के बच्चों को पूरे दिन में एक घंटे ही मोबाइल देना चाहिए.
- 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को या एडल्ट को अपने स्क्रीन टाइन का समय दो घंटे से ज्याद नहीं रखना चाहिए.
- बच्चों को 10 साल की उम्र के बाद ही फोन देना चाहिए.
स्क्रीन टाइम और भारतीय किशोर
- 398 मिलियन युवा सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं भारत में.
- 2023 में संकलित इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय किशोर इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर दो से तीन घंटे से अधिक समय बिताते हैं.
- 27% किशोरों में, सोशल मीडिया के इस्तेमाल के कारण एकाग्रता में कमी, खराब शैक्षणिक प्रदर्शन और मानसिक बीमारी की स्थिति पैदा होती है, निमहंस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार.
- 40% से अधिक भारतीय छात्रों का कहना है कि सोशल मीडिया के अत्यधिक देर तक उपयोग के कारण वे पर्याप्त नींद नहीं ले पाते.
- 65% भारतीय किशोरों ने 2022 में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की ओर से किये गये एक सर्वेक्षण में बताया कि वे इन्फ्लुएंसर और मित्रों की तुलना में खुद को कमतर आंकते हैं, जिससे वे उस क्षण स्वयं को अयोग्य महसूस करते हैं.
- 30% कम हो सकती है सोशल मीडिया पर बच्चों की निर्भरता अगर डिजिटल प्लेटफॉर्म और
बदल रही है किशोरों की दुनिया, अभिभावक रहें सतर्क
सोशल मीडिया की लत के कारण आज बहुत से बच्चों में अवसाद, निराशा, चिंता और तनाव के लक्षण देखे जा रहे हैं. एक के बाद एक कंटेंट देखने के आदी बच्चे रात में देर से सोते हैं, जबकि सुचह समय पर उठने की मजबूरी राहती है. उन्हें अच्छी नींद नहीं आती, जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है. दिन-रात आने वाले नोटिफिकेशन और अपडेट के चलते रोजमर्रा के कामकाज और पढ़ाई में ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है, ऐसे बच्चों को हमेशा यही लगा रहता है कि जरा देखें कि क्या नया हुआ?
ऑनलाइन मंचों पर साइबर बुलिंग एक आम बात
ऑनलाइन मंचों पर साइबर बुलिंग एक आम बात है. इससे बच्चों का आत्मसम्मान प्रभावित होता है. लंबे समय तक मोबाइल या कंप्यूटर पर बैठे रहने से मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. घंटों तक स्क्रीन पर नजरें गड़ाये रखने से ‘डिजिटल आइ स्ट्रेन’ होता है, आंखों में जलन, सूखापन और नजर कमजोर होने जैसी समस्याएं, भी पैदा ही सकती हैं. मोबद्दल फोन पर शुक कर देखने की मुद्रा से गर्दन, कंधों और पीठ में दर्द की शिकायत बढ़ रही है.
सामाजिक विकास भी प्रभावित
बच्चों का सामाजिक विकास भी प्रभावित हो रहा है. बच्चों के पास अब न ती मैदान या पार्क में जाकर खेलने का समय है, न ही सामाजिक मेलजोल का. वे माता-पिता के साथ भी कहीं जाने को तैयार नहीं होते. ऐसे बच्चे सामाजिक संबंधों में निहित भावनाओं को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं. अपना सामाजिक दायरा तैयार करने, बच्चों की टोलियों के साथ जुड़ने, सामाजिक संस्कारों को अपनाने आदि में उन्हें चुनौती पेश आती है.
मोबाइल चलाने पर लगेगी रोक
इन सबके अतिरिक्त, अनजाने में या दबाव में आकर निजी जानकारी साझा करने से पहचान की चोरी, धोखाधड़ी, यहां तक कि शारीरिक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है. मुंबई के नाला सोपारा में पिछले वर्ष एक बच्चे ने ऑनलाइन धोखाधड़ी में अपने पिता के बैंक खाते से दो लाख रुपरी डुबा देने के बाद जान दे दी.
इस लत से बचाव के लिए माता-पिता को जिम्मेदाराना रुख अपनाना चाहिए, चच्ची से मोबाइल फोन छीनना ती आज संभव नहीं है. बेहतर है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की दैनिक सीमा तय कर दी जाए, जैसे कि एक घंटा सुबह, एक घंटा शाम, बच्चों के सामने अभिभावक अपने डिजिटल उपयोग को भी सीमित रखें. उनके सोशल मीडिया खातों पर नजर बनाये रखें और उनमें गोपनीयता सेटिंग्स को सक्रिय करें. बच्चों के साथ इन मुद्दों पर खुली चर्चा करते रहना चाहिए और उन्हें वास्तविक दुनिया में सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए,
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हुई याचिका
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया उपयोग पर रोक की मांग की गयी थी. याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह मामला नीतिगत है, सौ इसके लिए आप संसद से कानून बनाने के लिए कहे, यह याचिका जेप फाउंडेशन द्वारा दाखिल की गयी थी जिसमें केंद्र व अन्य से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक बच्चों की पहुंच को नियंत्रित करने के लिए बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण जैसे मजबूत आयु सत्यापन प्रणाली लागू करने
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