Class 10th hindi PDF Notes- हमारी नींद – वीरेन डंगवाल Class 10th hindi PDF Notes
प्रमुख समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त, 1947 ई० में कीर्तिनगर टिहरी गढ़वाल उत्तरांचल में हुआ। मुजफ्फरपुर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद डंगवाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया और यहीं से आधुनिक हिन्दी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी० लिट् की उपाधि पायी। वे 1971 ई० बरेली कॉलेज में अध्यापन करते रहे। डंगवाल जी हिन्दी और अंग्रेजी में पत्रकारिता भी करते रहे। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में कुछ वर्षों तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक से स्तंभ लेखन भी किया। वे दैनिक ‘अमर उजाला’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं।
रचनात्मक विशेषता
रचनात्मक विशेषता – कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग अनूठा और बुनियादी किस्म का है। सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण लगता है। उन्होंने कविता में समाज के साधारण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य रचे हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी बेचैन करने वाले हैं। उन्होंने कविता के मार्फत ऐसी बहुत-सी वस्तुओं और उपस्थिति में विमर्श का संसार निर्मित किया है जो प्रायः ओझल और अनदेखी थीं । उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में ठेठ देशी किस्म के, खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।
साहित्यिक उपलब्धि
साहित्यिक उपलब्धि – वीरेन डंगवाल को ‘दुष्चक्र में स्राष्टा’ काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्हें ‘इसी दुनिया में’ पर रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार लिया। उन्हें श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और कविता तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद उन्होंने ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में किया। उन्होंने विश्व कविता से पाब्लो नेरूदा वर्तोल्त ब्रेख्त, बास्को पोपा, मीशेस्लाव होलुब, तदेऊष, रूजेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के भी अनुवाद किए।
कविता-परिचय
कविता-परिचय-प्रस्तुत कविता ‘हमारी नींद’ समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल द्वारा लिखित कविता संग्रह ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से संकलित है। इसमें सुविधा भोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी वेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते-बढ़ते जाने वाले जीवन का चित्रण किया गया है।
पाठ का सारांश
हिन्दी समकालीन काव्य धारा के प्रमुख कवि वीरेन डंगवाल ने अपनी कविता ‘हमारी नींद’ में समाज के साधारण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के विलक्षण ब्योरे और दृश्य रचे हैं। इसमें जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा और उनकी बुनावट का यथार्थ चित्रण है। सुविधाभोगी, अरामतलबी एवं बेपरवाहियों से बढ़ता हुआ जीवन क्रम को दर्शाया है।
जीवन की विषम परिस्थितियों
कवि-जीवन की विषम परिस्थितियों में भी रंगीन एवं काल्पनिक वातावरण से समझौता कर लेते हैं। भौतिकवादी सुख-सुविधा को बिम्ब के रूप में दर्शन कराते हुए कवि कहते हैं कि मनुष्य सुविधा भोगी बनकर आराम की नींद सोता रहता है लेकिन प्रकृति विकास क्रम को अनवरत जारी रखती है। जैसे प्रकृति-प्रदत्त वस्तु पेड़-पौधे अपने जीवन-क्रम के सिलसिले में पहले बीज के रूप में धरती के नीचे जाते हैं। फिर अंकुर रूपी कोमल सींगों से सतह रूपी छत को तोड़कर बाहर निकल पड़ते हैं।
कवि पुनः मक्खी जीवन क्रम के विषय
कवि पुनः मक्खी जीवन क्रम के विषय में कहते हैं कि अल्पायु में जीवन-यापन करने वाली मक्खी अपने जीवन के सुख-दुखों को भोगते हुए जीवन लीला समाप्त कर ली। कई शिशु उत्पन्न हुए, कई दंगे फसाद हुए तो कई बम धमाके हुए। जीवन क्रम में अत्याचार करने वाले और अत्याचार सहने वाले का सिलसिला चलता रहता है। अतः मानव अपनी ही गति में आरोह अवरोह के साथ बढ़ता है तो प्रकृति भी अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहती है।
पुनः कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण
पुनः कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण करते हुए कहता है कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की ज्वाला शांत करने की अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं वहाँ भी विलासी लोग भगवती जागरण तथा अन्य ढोंगी कार्यक्रम के आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं। साथ ही समाज के कुछ लोग सुशिक्षित होकर भी मानवता की परिभाषा को झुठलाते हुए अत्याचारियों के द्वारा जुटाये गये साधनों को मूक होकर देखते रहते हैं। हम आराम तलबी जिंदगी में कर्महीनता का परिचय देकर मानवता को कलंकित करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। इनमें आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने सामने कमजोर, बेबस, मजबूर लोगों पर अत्याचारियों के द्वारा होते अत्याचार को देखकर केवल यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि यह मेरा अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
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