मार्केट की राजा राजदूत बाइक | जानिए आज कल क्यूँ नहीं दिखता राजदूत बाइक
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मार्केट की राजा राजदूत बाइक | जानिए आज कल क्यूँ नहीं दिखता राजदूत बाइक

मार्केट की राजा राजदूत बाइक- 1947, भारत बंटवारे की त्रासदी से जूझ रहा था। ब्रिटिश शासन वाले भारत के लाहौर (अब पाकिस्तान में) से एक शख्स अपना कारोबार, घर, पहचान… सब छोड़कर भारत आया। उस शख्स का नाम था हर प्रसाद नंदा। पेशे से इंजीनियर और औद्योगिक सोच वाले नंदा तब सिर्फ 5000 रुपए और दो कारें लेकर भारत आए थे। शुरुआती कठिनाइयों के बावजूद नंदा ने 1951 में दिल्ली में एक छोटी-सी औद्योगिक यूनिट एस्कॉर्ट एग्री मशीनरी की जो होला शुरू आगे में एक मोटरसाइकिल लॉन्च की, जिसका नाम था राजदूत।

ऐसी मोटरसाइ‌किल जो हौसला, मजबूती और भरोसे का प्रतीक बनी। 1973 में आई राजकपूर की फिल्म ‘बॉबी’ में डिंपल कपाड़िया और ऋषि कपूर जिस बाइक पर बैठकर भागे थे, वह राजदूत जीटीएस 175 ही थी। इस फिल्म के बाद लोग प्यार से इसे ‘बॉबी बाइक’ तक कहने लगे। 70-80 के दशक में यह मोटरसाइकिल नेताओं, अधिकारियों से लेकर गांव के प्रभावशाली लोगों तक बराबर लोकप्रिय थी, लेकिन तकनीक में बदलाव न करने, कमजोर माइलेज और प्रदूषण मानकों में पिछड़ने जैसे कारणों ने इसे बाजार से पूरी तरह बाहर कर दिया। आज ब्रांड से सबक में पढ़िए कहानी राजदूत की

एस्कॉर्ट ने 2001 में अपनी मोटरसाइकिल यूनिट यामाहा कंपनी को बेच दी और 2005 तक राजदूत का प्रोडक्शन पूरी तरह बंद कर दिया। हालांकि राजदूत का ट्रेडमार्क अभी भी एस्कॉर्ट कंपनी के पास ही मौजूद है। कंपनी अब टैक्टर्स, निर्माण और रेलवे उपकरण एवं ऑटो पार्ट्स बना रही है। राजदूत अब एक क्लासिक बाइक है. जिसे उत्साही लोग रिस्टोर करते हैं और विंटेज बाइक क्लब में दिखाते हैं। रेडी-टु-राइड राजदूत-350 वर्तमान में 2.5 से 8 लाख रुपए की रेंज में बिक रही है।

  • 50% से अधिक हिस्सेदारी थी राजदूत की 70-80 के दशक में भारत के मोटरसाइकिल बाजार में। स्कूटर सेगमेंट को छोड़कर।
  • 1962 से 2005 तक राजदूत एक्सल की करीब 16 लाख गाड़ियां बिकीं पूरे भारत वर्ष में।
  • 1991 में आखिरी बार बिक्री हुई थी राजदूत 350 की। इसके बाद बिक्री बंद हो गई।

1960 से 1980 के दशक तक इसका कच्चे लोहे वाला फ्रेम भारतीय सड़कों की चुनौतियों के अनुकूल था। 2-स्ट्रोक इंजन तकनीक के कारण खराब सड़कों पर भी बिना रुके चलता था।

राजदूत 175 की कीमत काफी कम थी और इसका माइलेज 50-60 किमी/लीटर था। इसके चलते आम आदमी के लिए यह किफायती सवारी बनी। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां ईंधन बचत जरूरी थी।

पुलिस, सेना और सरकारी विभागों ने राजदूत को चुना। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में इसका व्यापक प्रयोग हुआ। इससे विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा बढ़ी।

उस दौर में लोगों का इससे भावनात्मक जुड़ाव था। बड़ी उपलब्धि पर बेटा बाइक के रूप में पिता से इसे मांगता। तोहफे में भी मिलती

राजदूत ने वर्षों तक अपनी 2-स्ट्रोक इंजन तकनीक और पुराने डिजाइन को नहीं बदला। जब दुनिया माइलेज, स्पीड और कम वजन की ओर बढ़ रही थी, राजदूत वहीं अटक गई।

महंगा मेंटेनेंस राजदूत का वजन ज्यादा था। इसे स्टार्ट करना कई बार मेहनत वाला काम था। इसके स्पेयर पार्ट्स महंगे और उपलब्धता कम थी। सर्विस सेंटर्स की कमी ने ग्राहकों को परेशान किया, जिससे इसकी बिक्री गिरने लगी।

भारत में बीएस नॉर्म्स आए और 2 स्ट्रोक इंजन प्रतिबंधित होने लगे। एस्कॉर्ट ने इसे अफोड या रीइंजीनियर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

समय के साथ एस्कॉर्ट न तो स्टाइलिश वर्जन लाया और न ही उसे रीब्रांड किया जबकि प्रतिद्वंद्वियों ने विज्ञापनों से बाजार कब्जा लिया

हर प्रसाद नंदा का सपना था कि भारत की सड़कों पर ऐसी मोटरसाइकिल दौड़े जो देसी हौसले और मजबूती का प्रतीक बने। उन्होंने पोलैंड की कंपनी डब्ल्यूएसके के साथ मिलकर उसकी प्रसिद्ध मोटरसाइ‌किल एसएचएल एम11 175सीसी की तर्ज पर 1962 में राजदूत 175 लॉन्च की। 1983 में एस्कॉर्ट ने यामाहा के सहयोग से राजदूत 350 (यामाहा आरडी 350) बनाई।

1985 में हीरो हॉन्डा ने सीडी 100 लॉन्च की। इसका 97 सीसी 4-स्ट्रोक इंजन 7.5 बीएचपी देता था जो राजदूत 175 के 9-10 बीएचपी से कम था, लेकिन इसका माइलेज 70-80 किमी/लीटर था जो राजदूत के 50 से 60 किमी/लीटर से काफी बेहतर था। सीडी 100 को लेकर एक डायलॉग था फिल इट, शट इट, फॅरगेट इट। इसने युवाओं को खूब आकर्षित किया।

ऐसे पड़ा नाम

नंदा ने कहा था मेरी बाइक राजा की तरह चलेगी, जैसे कोई राजदूत देश का गौरव लेकर चलता है। यहीं से उन्हें राजदूत नाम मिला।

सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रॉयल एनफील्ड बुलेट, येज्दी रोडकिंग और जावा इसके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे। 80 के दशक में सुजुकी और होंडा ने इसे और चुनौती दी।

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